भारतीय संस्कृति मे पर्वो का विशेष महत्व है,क्योकि यह पर्व ही है जो हमारी संस्कृति को जिन्दा रखते है।
इसी दिन सभी आयु के लोग अपने काम-काज को छोडकर इन्ही पर्वो को मनाने मे परिवारजनो के साथ व्यस्त होते है।
पतँगो का उत्सव भी एक आनन्द मय पर्व है,
जिसमे ज्यादा सक्रिय बच्चे रह्ते है ।
ग्रामींण परिप्रेक्ष्य मे पतंगोत्सव की शुरुआत मकर संक्रांति से कई दिनो पहले से हो जाती है, जिसमे बच्चे पतँगो और माँजो के संग्रहण मे लग जाते है और जब पर्व आ जाता है तब उस दिन वे अपने पतंगो के पिटारे को खोलते है।
इस दिन बच्चो मे इतनी ऊजाये होती है मानो उनमे कोई अद्भूत शक्ति का संचार हुआ हो।
बच्चे उस रंगीन वातावरण मे पतंग के साथ इतना घूल मिल जाते है की उन्हे ऐसा प्रतीत होता है की वो पतंग की डोर के साथ खुद ही आसमान उड़ रहे हो ।
वे छतो की कठोरता को नजरअंदाज कर उन्हे मुलायम गद्दी की भांति समझते है।
अगर वे उन छतो के किनारो से गिर जाते है तो वे और नयी उर्जा और उम्मीदों के साथ उठ खडे होते है।
अन्त मे यह ही की आज के आधुनिक युग मे लोग पर्वो के मह्त्वो को भूल रहे है अतः हमे ज्यादा से ज्यादा पर्वो को अपने परिवार जनो के साथ जरुर ही मनाना चाहिये।
लेखक:प्रवीण मांगलिया
कारोला सांचोर (राजस्थान)