वारकरी संप्रदाय की जड़ें घर-घर में हो
हभप डॉ. तुकाराम महाराज गरुड़ ठाकुरबुवा दैठाणेकर के विचार: पालखी प्रस्थान समारोह के अवसर पर सार्वजनिक शिक्षा पर अभिनव कार्यक्रम
पुणे: वारकरी संप्रदाय आध्यात्मिक उत्थान, सुख, शांति और संतुष्टि के लिए है. इस संप्रदाय को हर घर में विकसित करने के लिए प्रशिक्षित, समर्पित और रोल मॉडल की आवश्यकता है. इसके लिए हर परिवार के बच्चों के मन में वारकरी संप्रदाय का बीजारोपण करना होगा ताकि इस मौसम में बुजुर्गों से ज्यादा युवा पांडुरंगा के चरणों में नजर आएं. ऐसे विचार हभप डॉ. तुकाराम महाराज गरुड़ ठाकुरबुवा दैठाणेकर ने व्यक्त किये.
विश्वशांति केंद्र (आलंदी), माइर्स एमआईटी, पुणे और श्री संत ज्ञानेश्वर तुकाराम ज्ञानतीर्थ विश्वरूप दर्शन मंच श्री क्षेत्र आलंदी, माइर्स एमआईटी, पुणे और श्री क्षेत्र आलंदी देहु स्थानीय क्षेत्र विकास समिति के सहयोग से पालकी प्रस्थान समारोह के अवसर पर वह यूनेस्को अध्यासन के तहत लोकतंत्र, मानवाधिकार, शांति और सहिष्णुता के लिए शिक्षा के अवसर पर बोल रहे थे.
इस अवसर पर विश्वशांति केंद्र (आलंदी), मायर्स एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड, उषा विश्वनाथ कराड, श्री क्षेत्र आलंदी देहु परिसर विकास समिति के समन्वयक प्रो. स्वाति कराड चाटे, डॉ. संजय उपाध्याय, उपाध्य, गिरीश दाते, डाॅ. टी.एन.मोर और डॉ. सुदाम महाराज पानेगांवकर उपस्थित थे.
डॉ. तुकाराम महाराज गरुड़ ठाकुरबुवा दैठाणेकर ने कहा, वारकार्यों में संख्यात्मक नहीं, बल्कि गुणात्मक विकास होना चाहिए. आज के समय में एक ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है जो छोटे बच्चों को संस्कारित करने के लिए सांप्रदायिक शिक्षा प्रदान करे. नई पीढ़ी मोबाइल फोन की आदी हो गई है और उन्हें इससे हतोत्साहित किया जाना चाहिए . एक निष्ठावान सेवक बनकर संसार से मोह कम करना चाहिए. साथ ही मोक्ष प्राप्ति का लक्ष्य भी प्राप्त करना चाहिए.
डॉ. संजय उपाध्ये ने कहा कि भक्ति के पथ पर चलते हुए मै का त्याग करना होगा. कर्म योग बहुत महत्वपूर्ण है और इसका निरंतर अध्ययन करना चाहिए. हमारा व्यवहार कर्म के साथ कार्यों के माध्यम से दिखना चाहिए. महाभारत का अध्ययन करने के बाद यह अहसास होता है कि मन के विपरीत चीजें लगातार घटित हो रही हैं. उसके लिए विरोधाभास जरूरी है. ऐसे समय में दृढ़ निश्चय और पूर्ण विवेक से काम लेना चाहिए.
महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध कीर्तनकार वै. बाबा महाराज सातारकर की पुत्री प.पू.श्रीमती भगवती दांडेकर ने कीर्तन किया. इसके बाद इंद्रायणी माता की आरती की गई.
संचालन हभप शालिकराम खंडारे ने किया. महेश महाराज नलावडे ने धन्यवाद ज्ञापित किया.