मीडिया और समाज के बीच अटूट संबंध रवि कपूर के विचार: MIT WPU में छठे राष्ट्रीय मीडिया और पत्रकारिता सम्मेलन का उद्घाटन’
पुणे : “मीडिया और समाज का अटूट रिश्ता है. पत्रकारिता तभी सार्थक होती है जब वह सामाजिक मुद्दों और जनहित से जुड़ी हो. पत्रकारिता अध्ययन के तीन स्तरों में पहला स्तर पिछले 100 वर्षों की पत्रकारिता,आज़ादी का दौर की पूर्व की पत्रकारिता है और मौजूदा दौर की पत्रकारिता.” ऐसे विचार पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एवं संसद टीवी के पूर्व वरिष्ठ कार्यकारी अधिकारी रवि कपूर ने व्यक्त किये.
छठे राष्ट्रीय मीडिया और पत्रकारिता सम्मेलन का आयोजन स्कूल ऑफ मीडिया एंड कम्युनिकेशन, एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, पुणे द्वारा एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, कोथरुड में किया गया था. वे इसके उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
पुणे यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट, आर. के.लक्ष्मण संग्रहालय और नई दिल्ली फॉरेन कॉरेस्पोंडेंट्स क्लब ऑफ साउथ एशिया के सहयोग से यह सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है.
मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध टेलीविजन निर्माता सिद्धार्थ काक, पुणे श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष सुमित भावे, हेराल्ड प्रकाशन समूह के प्रमुख सुजय गुप्ता, बुलंद भारत टीवी के प्रधान संपादक राजकिशोर तिवारी, लेखक नील डिसिल्वा और अभिनेत्री प्रांजलि सिंह परिहार उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी डब्ल्यूपीयू के संस्थापक अध्यक्ष प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई.
साथ ही एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के सीएओ डॉ. संजय कामतेकर, स्कूल ऑफ मीडिया कम्युनिकेशन के एसोसिएट प्रिंसिपल धीरज सिंह उपस्थित थे.
सम्मेलन की परिकल्पना और नेतृत्व एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के कार्यकारी अध्यक्ष राहुल विश्वनाथ कराड द्वारा किया जा रहा है.
रवि कपूर ने कहा, ”पहला स्तर तो यह है कि पिछले 100 सालों में पूरा समाज और सृष्टि पर होने वाली घटनाएं बीबीसी, सीएनबीसी, इकोनॉमिक्स और टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अखबारों से जुड़ी थीं. फिर देश में आजादी से पहले के दौर में म. गांधी जी ने समाचार पत्रों के माध्यम से पूरे समाज को नियंत्रित किया. आज के समय में पूरा मानव सोशल मीडिया के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ा हुआ है. अब यह सोचने का समय है कि इसे कैसे नियंत्रित किया जाए .
प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, “समाज को दिशा देने का काम मीडिया के माध्यम से होता है. इसलिए पत्रकारिता को सिद्धांतों का पालन करते हुए सही रास्ते पर चलना चाहिए. पत्रकारिता को अध्यात्म पर आधारित होना चाहिए. क्योंकि चेतना की अवधारणा इस क्षेत्र में एक नई दिशा दे रही है. शिक्षा के मामले में मीडिया को इस बारे में सोचना चाहिए.
सुमीत भावे ने कहा, “पत्रकारिता एक ऐसा माध्यम है जो समाज में होने वाली घटनाओं को व्यक्त करता है. लेकिन वर्तमान समय में बढ़ते सोशल मीडिया के कारण समाज अपनी बात तो कह सकता है, लेकिन वही मीडिया देश में विभाजन लाना चाहता है. पत्रकारों को चाहिए कि एआई के प्रवेश के साथ ही खुद को अपडेट करें.”
उन्होंने कहा, “पुणे श्रमिक पत्रकार संघ 1940 से बना देश का सबसे पुराना संगठन है और इसमें पुणे और पिंपरी से 500 से अधिक सदस्य हैं.
राजकिशोर तिवारी ने कहा, “मीडिया शक्तिशाली है और समाचारों की निरंतर खोज में कई चुनौतियाँ हैं. आपके पास 5W और 1H के सिद्धांत का पालन करते हुए प्रश्न पूछने की शक्ति होनी चाहिए. इसके बिना पत्रकारिता पूरी नहीं हो सकती. एआई की दुनिया में, कंटेंट अभी भी सबसे महत्वपूर्ण कारक है.
सिद्धार्थ काक ने कहा, “समाज का कायाकल्प करने का काम मीडिया के जरिए होता है. पत्रकारिता करते समय अवलोकन बहुत जरूरी है. साथ ही सुनना और समझना, सवाल पूछना और सोच-समझकर लिखना भी बहुत जरूरी है.
मीडिया समाज से जुड़ा है इसलिए किसी भी मुद्दे से निपटते समय उसकी जड़ तक जाकर काम करना चाहिए. मिशन, विज़न, लक्ष्य और खोजी पत्रकारिता करते समय पत्रकारिता के सिद्धांत को नहीं छोडे . कोविड के समय से इस सेक्टर में जबरदस्त बदलाव आए हैं. ऐसे विचार सुजय गुप्ता, नील डिसिल्वा और अभिनेत्री प्रांजलि सिंह परिहार ने व्यक्त किये.
एमआईटी डब्ल्यूपीयू के कुलपति डॉ. आर. एम. चिटनिस ने एक वीडियो संदेश के माध्यम से अपनी शुभकामनाएं दीं. उसके बाद डाॅ. संजय कामतेकर ने अपने विचार व्यक्त किये.
प्रो धीरज सिंह ने स्वागत भाषण दिया.डॉ. संचालन गौतम बापट ने किया।