इस्राइल का ईरान पर हमला, तनाव बढ़ने के संकेत नहीं हैं
इस्राइल ने ईरानी हमले का जवाब देते हुए 100 लड़ाकू विमानों से हमला किया। हमले में मुख्य ठिकानों को नहीं निशाना बनाया गया है, जिससे तनाव कम करने की संभावना बढ़ी है। शांति प्रयासों पर जोर दे रहे दोनों देशों के रुख से बंधकों की रिहाई का रास्ता खुल सकता है।
इस्राइल ने महीने की शुरुआत में हुए ईरानी हमले का जवाब देते हुए शनिवार तड़के करीब 100 लड़ाकू विमानों के जरिए उस पर हमला किया। इस रूप में जरूर यह एक गंभीर घटना कही जाएगी कि पहली बार इस्राइल ने ईरान पर सीधा हमला किया है, लेकिन कई ऐसे संकेत हैं जो बताते हैं कि इस कार्रवाई के बाद मध्यपूर्व में तनाव कम करने के प्रयास जोर पकड़ सकते हैं।
संतुलित कार्रवाई
इस्राइल की इस कार्रवाई ने उसे यह दावा करने की सहूलियत दे दी है कि जैसे को तैसा की तर्ज पर जवाब देकर उसने ईरान से हिसाब बराबर कर लिया है, लेकिन महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि न तो इस सैन्य कार्रवाई की जद में परमाणु और तेल ठिकानों को शामिल किया गया और न ही आम लोगों को नुकसान पहुंचाया गया। जानकारों के मुताबिक, यह इस बात का संकेत है कि इस्राइल का इरादा मामले को और भड़काने का नहीं है।
जवाबी प्रतिक्रिया
हमले पर ईरान की सतर्क और संतुलित प्रतिक्रिया भी कुछ ऐसा ही संकेत दे रही है। ईरानी विदेश मंत्रालय ने हमले के बाद कहा कि उसे आत्मरक्षा में कार्रवाई करने का पूरा अधिकार है। ध्यान रहे, उसने इस हमले का बदला लेने जैसी कोई बात नहीं कही। इसके उलट कुछ समय बाद ईरानी सेना की ओर से जारी बयान में यह संकेत दिया गया कि अगर गाजा पट्टी और लेबनान में जारी इस्राइल की जमीनी कार्रवाई पर किसी तरह की रोक लगती है, कोई युद्धविराम लागू होता है तो उसके जवाबी हमले की संभावना और कम हो जाएगी।
बंधकों की रिहाई का सवाल
दोनों देशों के रुख में आई इस नरमी ने शांति प्रयासों की सफलता की गुंजाइश बढ़ा दी है। देखा जाए तो हिजबुल्लाह और हमास के शीर्ष नेतृत्व का काफी हद तक सफाया करने के बाद इस्राइल की नेतन्याहू सरकार अब यह कह सकती है कि उसका अभियान निष्फल नहीं रहा। ऐसे में बड़ा सवाल यह हो जाता है कि आखिर बंधकों की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित करने में उसे और कितना वक्त लगेगा। अगर मध्यस्थता के प्रयासों के जरिए बंधकों की रिहाई का कोई सर्वमान्य फॉर्म्युला निकलता है तो सभी पक्षों के लिए राहत की बात होगी।
शांति को मिले मौका
यह सही समय है कूटनीति के जरिए शांति को एक और मौका देने का। इसमें दो राय नहीं कि इस्राइल और फलस्तीन का मूल विवाद काफी जटिल है, इसे रातोरात हल नहीं किया जा सकता, लेकिन तात्कालिक तौर पर यथास्थिति को स्वीकार करते हुए शांति स्थापित करने और फिर मूल विवाद को बातचीत से हल करने का प्रयास जारी रखने पर सहमति भी कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं होगी।