आगे चुनौती बड़ी... भूलनी होगी न्यूजीलैंड से मिली ये हार, टूटा 12 साल का रिकॉर्ड
न्यूजीलैंड के हाथों घरेलू टेस्ट सीरीज गंवाकर भारतीय क्रिकेट को गहरा झटका लगा है। लगातार 18 घरेलू सीरीज जीतने का रिकॉर्ड तोड़कर न्यूजीलैंड ने न सिर्फ भारतीय टीम को बल्कि करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों को चौंका दिया है। भारतीय स्पिन आक्रमण, जो हमेशा से टीम की ताकत रहा है, इस सीरीज में बिलकुल प्रभावहीन रहा।
न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में टीम इंडिया को मिली हार ऐसा सदमा है, जिससे उबरने में क्रिकेट फैंस को लंबा वक्त लगेगा। खेल में किसी प्रतिद्वंद्वी को कमजोर नहीं समझा जा सकता, लेकिन तीन मैचों की सीरीज में सारे मैच हारना वाकई अप्रत्याशित है। अब अहम सवाल है कि टीम इस हार से उबरेगी कैसे?
ढह गया किला
अपने घर में 12 बरसों तक अजेय बने रहना छोटी बात नहीं है। लगातार 18 घरेलू सीरीज जीतना ऐसा रेकॉर्ड है, जिसे ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज जैसी टीमें अपने शिखर पर रहते हुए भी हासिल नहीं कर पाई थीं। इसी रेकॉर्ड ने टेस्ट क्रिकेट में भारत को ‘द लास्ट फ्रंटियर’ का रुतबा दिया। जाहिर है, जीत का सिलसिला कहीं तो थमना था। क्लाइव लॉयड और स्टीव वॉ जैसे कप्तान भी हारे हैं, लेकिन यह हार इसलिए चुभ रही है, क्योंकि भारतीय टीम अपने ही घर में और अपने ही हथियार, स्पिन बोलिंग से धराशायी हो गई।
सबसे बड़ी गलती
भारत के स्पिनर्स उस तरह प्रभावी नहीं हो सके, जैसे न्यूजीलैंड के। इक्का-दुक्का को छोड़कर हमारे बैटर्स भी नाकाम रहे। कहा जा रहा है कि टीम इंडिया कंडिशन समझने में विफल रही। तीन टेस्ट मैचों की सीरीज का पहला मैच बेंगलुरु में हुआ था। उस मैच में बादल भरे आसमान के नीचे पहले बैटिंग करने का भारतीय टीम का फैसला गलत साबित हुआ और वहां से मोमेंटम पूरी सीरीज के लिए न्यूजीलैंड के पक्ष में चला गया। लेकिन, कंडिशन पढ़ने में गलती हुई कैसे?
सीमित टेस्ट वेन्यू
पिछले कुछ समय में यह बात कई बार उठ चुकी है कि भारत में चुनिंदा मैदानों पर ही टेस्ट मैच आयोजित किए जाने चाहिए। इससे टीम को पता रहेगा कि मैच कहां होना है और वहां किस तरह की परिस्थितियां मिलेंगी। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड जैसी टीमें यही करती हैं। देशभर में घूम-घूमकर टेस्ट खेलने से टीम को नुकसान हो रहा। ऐसा लगता है कि भारतीयों से ज्यादा न्यूजीलैंड के खिलाड़ियों ने माहौल को पढ़ लिया था।
सीनियर्स की जिम्मेदारी
जीत तमाम कमियों को छुपा देती है, जबकि हार से हर जख्म खुल जाते हैं। फिलहाल टीम इंडिया के साथ यही मामला है। ऐसा कितनी बार हुआ है, जब लोअर ऑर्डर ने बैटिंग में टीम को संभाला। कई सीनियर तब भी कंसिस्टेंट नहीं थे। इस पूरी सीरीज में वह कमी खुलकर सामने आ गई। सीनियर्स के जिम्मेदारी लिए बिना टीम आगे नहीं बढ़ सकती।
आगे की चुनौती
टीम इंडिया इस सीरीज में अति-आत्मविश्वास के साथ उतरी थी। परिणाम अप्रत्याशित रहे। अब उसके सामने वह चुनौती है, जिसे सबसे मुश्किल माना जाता है, ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज। भारतीय टीम लगातार तीसरी बार वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में जगह बना पाती है या नहीं, यह इस सीरीज से तय होगा। हार की समीक्षा की जानी चाहिए, उपाय भी अपनाए जाने चाहिए, लेकिन हर हाल में इस हार को पीछे छोड़ना होगा। तभी भारतीय टीम भविष्य में और मजबूत होकर सामने आ सकती है।