महापुरूषों के सार को आत्मसात करने वाले साहित्यकार प्रो.सोनग्रा
डॉ. श्रीपाल सबनीस के विचारः माईर्स एमआईटी डब्ल्यूपीयू की ओर से
आचार्य सोनग्रा को ‘भारतीय साहित्य-सस्कृती अलंकार पुरस्कार’ से नवाजा गया
पुणे, : आचार्य रतनलाल सोनग्रा ने भगवान गौतम बुद्ध, महावीर, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, मा.फुले, अन्नाभाऊ साठे, मुंडा, रविदास और विठ्ठल शिंदे जैसे सभी महापुरूषों के सार को आत्मसात किया है. उन्होंने कई धर्मों का अध्ययन किया है और व्यापक रूप से लिखा है. उनकी कलम मानव केंद्रित है. यह विचार ८९ वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष एवं वरिष्ठ लेखक डॉ. श्रीपाल सबनीस ने व्यक्त किए.
प्रख्यात लेखक आचार्य रतनलाल सोनग्रा को माइर्स एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी द्वारा भारतीय साहित्य- संस्कृति अलंकार पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस समय डॉ. सबनिस बोल रहे थे.
इस अवसर पर बिहार विश्वविद्यालय के प्रो. रतनलाल सिंह आरोही, वरिष्ठ पत्रकार सुरेशचंद्र पाध्ये बतौर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो.डॉ.विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई.
साथ ही नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एन.पठाण और श्रीमती सोनाग्रा उपस्थित थे.
श्रीपाल सबनीस ने कहा, ज्ञानेश्वर और बुद्ध पर लिखनेवाले आचार्य सोनाग्रा जैसा व्यक्ति भारत में देखने को नहीं मिलेगा. आज एमआईटी में ज्ञान और विज्ञान देखने को मिलता है. चूंकि डॉ.विश्वनाथ कराड द्वारा किया गया कार्य सर्वव्यापी है, इसलिए वे एक महान व्यक्तित्व विश्वरत्न है, उनकी प्रसिद्धी सात समुद्र पार तक पहुंच गई है.
प्रो. डॉ. विश्वनाथ कराड ने कहा, समाज को महान संतों द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए. सामाजिक कल्याण उनका प्राथमिक कर्तव्य है. प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञानमयो विज्ञानमयो की अवधारणा के अनुसार व्यवहार करना चाहिए. साहित्य का क्षेत्र समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालता है. संत साहित्य समाज को सही मार्ग दिखाते है.
आचार्य रतनलाल सोनग्रा ने कहा, व्यक्ति को अपना कर्तव्य निभाते रहना चाहिए. जब समाज को आपका कार्य अच्छा लेगगा ,तो वे इस ओर ध्यान देंगे. जीवन में हमेशा रूचि रखें. जब आप साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश करेंगे तो आप समझेंगे कि समाज के लोग किस तरह से अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं. साहित्य की दुनिया में काका साहब गाडगिल, आचार्य अत्रे और प्रो. विश्वनाथ कराड का सहयोग पाकर मैं भाग्यशाली हूं.
प्रो.रतनलाल सिंह आरोही ने कहा, देश की सामाजिक व्यवस्था असमान और जाति आधारित है. भगवान गौतम बुद्ध से लेकर आज तक कई लोंगो ने इसे खत्म करने की कोशिश की है. समाज में असमानता को दूर करने के लिए देश में समानता का आंदोलन चलाया. इसी सूत्र को थामें हुए आचार्य सोनग्रा ने जीवन भर समानता पर लिखा है.
सुरेश चंद्र पाध्ये ने कहा, आचार्य सोनग्रा ने अपना पूरा जीवन चिंतन करते हुए हिंदी और मराठी में लेखन का निर्माण किया है. उन्होंने स्वयं के क्षितिज को व्यापक बनाया है. जिसका लाभ सामाजिक व्यवस्था को मिला है.
यहां पर डॉ. महेश थोरवे ने सम्मान पत्र पढा.
कार्यक्रम का संचालन प्रा. प्रदीप माली तथा डॉ. महेश थोरवे ने आभार माना.