चार महिने के बच्चे के हृदय का छिद्र बंद करने के लिए सह्याद्रि हॉस्पिटल्स में हायब्रिड प्रक्रिया
पुणे : सह्याद्रि सुपर स्पेशालिटी हॉस्पिटल डेक्कन के डॉक्टरों की टीम ने हालहि में एक चार महिने के और 4.2 किलो वजन के बच्चे के हृदय में रहा छिद्र (व्हीएसडी क्लोजर) बंद करने के लिए हायब्रिड प्रक्रिया की.
महाराष्ट्र में अबतक हायब्रिड प्रक्रिया किए सबसे छोटे बच्चों में से यह एक है. यह छिद्र बंद करने के लिए 12 मिमी मस्क्युलर व्हीएसडी उपकरण रोपित किया गया.
(व्हेंट्रीक्युलर सेप्टल डिफेक्ट (व्हीएसडी) मतलब हृदय में रहा छिद्र है.हृदय से संबंधित बच्चों में जन्मजात दिखाई देनेवाली यह सामान्य व्याधी हैे.हृदय के दो हिस्से अलग करनेवाली दीवार में (सेप्टम) यह छिद्र दिखाई देता है.इसलिए हृदय में रहा रक्त यह बाएँ हिस्से से दाएँ हिस्से में जा सकता है. इसलिए प्राणवायूयुक्त रक्त और प्राणवायू कम रहा रक्त यह एक दुसरे के साथ मिलते है और बच्चेपर इसका विपरीत परिणाम हो सकता है.)
इसके बारें में बात करते हुए सह्याद्रि हॉस्पिटल्स के हृदय शल्यविशारद डॉ.राजेश कौशिश और बाल हृदयरोग तज्ञ डॉ.पंकज सुगांवकर ने कहा की, इस चार महिने,15 दिन के बच्चे को अपने जीवन के दसवें दिन हृदय में 10 मिमी छिद्र (मिड मस्क्युलर व्हीएसडी) होने का निदान हुआ. जब उसके माता-पिता उसे हमारे पास लेकर आए तो, उसे लगातार खाँसी और सर्दी की तकलीफ हो रही थी. इस बच्चे का वजन 4.2 किलो था और वजन भी बढ नहीं रहा था. उसपर कुछ दवाईयाँ शुरू थी, लेकिन उनका कुछ असर दिखाई नहीं दे रहा था.
बाल हृदयरोग तज्ञ डॉ.पंकज सुगांवकर ने कहा की, हृदय का यह छिद्र बंद करना जरूरी था और इसलिए हमनें हायब्रिड तकनीक का उपयोग किया. हायब्रिड तकनीक यह हालहि के दिनों में उपयोग की जानेवाली एक प्रभावी तकनीक है,जिसमें हृदय शल्यविशारद व हृदयरोगतज्ञ एक दूसरे के सहयोग से यह प्रक्रिया करते है. इसमें हृदय तक पहुँचने के लिए प्रभावी प्रक्रिया की जाती है,पल्मनरी बायपास की जरूरत नहीं पडती और अन्य जटीलताओं से बचा जा सकता है.
हृदय शल्यविशारद डॉ.कौशिश इन्होंने स्टर्नोटॉमी यह प्रक्रिया की. जिससे आगे की प्रक्रिया के लिए हृदय के दाएँ हिस्सेतक पहुँच सके. उसके बाद उर्वरित प्रक्रिया यह जटील थी, कारण इसमें इस उपकरण का रोपण करना था. यह रोपण डॉ.पंकज सुगांवकर के नेतृत्व में टीम द्वारा किया गया. हृदय का 10 मिमी का यह छिद्र 12 मिमी मस्क्युलर व्हीएसडी उपकरण रोपण करके बंद किया गया. यह रोपण करते हुए एपिकार्डिअल एको गायडन्स का उपयोग किया गया.जिसमें इस विषय के विशेषज्ञों ने यह छिद्र रहे विशिष्ट जगह की प्रतिमा प्रक्रिया करनेवाले डॉक्टरों को उपलब्ध कर दी.इस प्रक्रिया का दुसरा महत्त्वपूर्ण पैलू मतलब इस प्रक्रियाओं में सामान्यरूप से उपयोग की जानेवाली हार्ट लंग मशिन का उपयोग न करते हुए हृदय धडकने के समय पर ही सीधे प्रक्रिया की गई.प्रक्रिया होने के बाद तीन घंटों में बच्चे का व्हेंटीलेशन का साहाय्य निकाला गया और निगरानी के लिए दो दिन अतिदक्षता विभाग में रखा गया.
सामान्यरूप से इस्तेमाल किया जानेवाला पर्क्युटेनियस व्हीएसडी उपकरण यह इस प्रक्रिया में संभव नहीं था,कारण इसे एक बडे संरक्षक आवरण की आवश्यकता थी.
डॉक्टरों की टीम में बाल हृदयरोग तज्ञ डॉ. पंकज सुगांवकर, हृदय शल्यविशारद डॉ. राजेश कौशिश , ह्रदयरोग भूलतज्ञ डॉ.शंतनू शास्त्री,डॉ.सुहास सोनवणे और डॉ. प्रीती अडातेे, बालरोगचिकित्सक डॉ. प्रशांत खंडगवे और ऑपरेशन थिएटर की नर्सेस व सिस्टर्स और पोस्टऑपरेटिव्ह टीम का समावेश था.
बच्चे के परिवार की आर्थिक स्थिती न होने के कारण प्रक्रिया के लिए आवश्यक निधी जमा करने के लिए सह्याद्रि हॉस्पिटल डेक्कन युनिट की सामाजिक कार्यकर्ता शिल्पा महाजन व उनकी टीम ने मदद की.