तेजी से प्रसार और संभावित परेशानियां भारत में थायरॉइड की तुरंत जांच कराने की जरूरत पर जोर देती
पुणे:भारत में 10 व्यक्तियों में से कम से कम एक वयस्क या 10.95 फीसदी लोग हाइपो थायरॉइडिज्म या थायरॉइड संबंधी निष्क्रिय गड़बड़ी से पीड़ित हैं।1 भारत में थायरॉइड के प्रसार की रफ्तार विकसित देशों से उल्लेखनीय रूप से काफी ज्यादा है। यह 2 से 5 फीसदी तक अधिक है। पुणे में औसतन 18.97 फीसदी व्यक्ति मिश्रित रूप से थायरॉइड के प्रत्यक्ष या प्रारंभिक लक्षणों से पीड़ित है।1 दरअसल यह बीमारी वंशानुगत है। कुल मिलाकर थायरॉइड होने का खतरा उस व्यक्ति में ज्यादा होता है, जिसके परिवार में कोई व्यक्ति थायरॉइड से पीड़ित रहा हो या जिसकी फैमिली हिस्ट्री इस तरह की रही हो।1,2 थायरॉइड संबंधी गड़बड़ी के साथ दूसरे गैर संचारी रोग (एनसीडी) अक्सर बड़े पैमाने पर दिखाई देते हैं और उससे जुड़े बोझ भी बढ़ जाते हैं।[2] इसके बावजूद मौजूदा हालात में यह साफ दिखाई देता है कि पुरानी बीमारियों के इलाज के प्रति लोग उतना ध्यान नहीं देते।3 इस दूरी को पाटने के लिए एबॅट ने कई पहल की है। एबॉट थायरॉइड की गड़बड़ियों के प्रति लोगों में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे लोगों में थायरॉइड रोग के प्रति बेहतर समझ विकसित हो। एबॅट इस बीमारी की नियमित रूप से जांच कराने की जरूरत पर जोर देता हैश
थायरॉइड की ग्रंथि मेटाबॉलिज्म और शरीर के विकास में मुख्य भूमिका निभाती है। यह तरह-तरह की कार्यप्रणालियों को नियमित करती है, जिसमें एनर्जी लेवल, वजन, हार्ट रेट और मूड शामिल है। हाइपो थायरॉइडिज्म उस समय होता है, जब थायरॉइड ग्रंथि शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में थायरॉइड हार्मोन पैदा नहीं कर पाती। भारत के आठ शहरों में की गई स्टडी के अनुसार भारत में करीब एक तिहाई लोग हाइपो थायरॉइडिज्म से पीड़ित हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक अपनी जांच नहीं कराई है।1 इस तरह आबादी के बड़े हिस्से को थायरॉइड संबंधी गड़बड़ियों की शिकायत है, लेकिन वह इसका इलाज नहीं करा सकता। इस जागरूकता की कमी से शऱीर में कई तरह के मिश्रित गैर विशिष्ट लक्षण उभरते हैं, जिनमें थकान, बहुत ज्यादा वजन बढ़ना, कब्ज, शुष्क त्वचा, सर्दी न सह पाने की क्षमता, मांसपेशियों में जकड़न या ऐंठन और सूजी हुई पलकें शामिल हैं।
भारतीय आबादी में थायरॉइड से पीड़ित व्यक्ति इसकी जांच बेहद कम कराते हैं, हालांकि अगर थायरॉइड का इलाज नहीं किया जाता तो थायरॉइड की गड़बड़ी से कोलेस्ट्रोल लेवल बहुत ज्यादा हो सकता है, मासिक चक्र में गड़बड़ी आ सकती है। डिप्रेशन हो सकता है। इससे गंभीर रूप से दिल की बीमारियां और न्यूरोलॉजी से संबंधित गड़बड़ियां पनप सकती हैं। कुल मिलाकर थायरॉइड संबंधी गड़बड़ियां रोजमर्रा की जिंदगी की गुणवत्ता, कार्य क्षमता और किसी व्यक्ति की आर्थिक उत्पादकता को भी प्रभावित करती है।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हाइपोथाइरॉइडिज्म का खतरा तीन गुना अधिक होता है।1 वह इसके प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। उनमें बांझपन और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) का जोखिम ज्यादा होता है। हाइपोथाइरॉडिज्म गर्भवती महिलाओं पर बेहद चिंताजनक प्रभाव डालता है, जिनमें प्लेसेंटल असामान्यताएं, एनीमिया, प्रीक्लेम्पसिया, गर्भपात और प्रसव के बाद रक्तस्राव का खतरा शामिल होता है।2 दुनिया भर के डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान थायरॉइड संबंधी गड़बड़ियों की जांच कराने की सलाह देते हैं।
डॉ. श्रीरंग गोडबोले, पुणे के इनस्ट्राइड क्लिनिकचे कन्सल्टण्ट एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, कहा, “पुणे में हमने यह देखा है कि हाइपोथायरॉइडिज्म के 3.47 फीसदी मामलों की जांच नहीं हो पाती। 35 वर्ष या उससे अधिक उम्र के वयस्कों, गर्भवती और विशेष रूप से मध्यम आयु वर्ग की महिलाओं को थायरॉइड होने का खतरा ज्यादा रहता है। यदि इसका इलाज नहीं कराया जाए तो इससे शरीर में अतिरिक्त परेशानी हो सकती है। हाइपोथारॉइडिज्म की पहचान न होने से दूसरी सहायक बीमारियां जैसे डायबिटीज और हाइपरटेंशन के शरीर में पनपने का खतरा रहता है। टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस (टी2डीएम) और थायरॉइड संबंधी गड़बड़ियों के बीच पैथोफिजियोलॉजिकल जुड़ाव को विभिन्न जैव रासायनिक, आनुवंशिक और हार्मोनल खराबी के बीच पारस्परिक क्रिया का नतीजा माना जाता है। अगर टी2डीएम को खराब तरीके से मैनेज किया जाता है तो इससे डायबिटीज के रोगियों में इंसुलिन प्रतिरोध, हाइरइंसुलिनएनीमिया और हाइपोग्लाइसेमिक स्थितियों के उभरने का खतरा बढ़ सकता है।11 इसके नतीजे के रूप में टी2डीएम से दिल के रोग होने का खतरा बढ़ता है। यह खतरा सिर्फ समय पर जांच कराने और नियमित रूप से जांच कराने से ही कम हो सकता है। इससे प्रारंभिक चरण में ही हाइपोथाइराडिज्म के इलाज और बीमारी को बेहतर ढंग से मैनेज करने को बढ़ावा मिलेगा।”