
‘ऑपरेशन सिंदूर विजय’ पर विदेशों में भारत का प्रतिनिधिमंडल — क्या वाकई राष्ट्रीय हित में है यह पहल?
ग्राउंड रिपोर्ट | देवेन्द्र सिंह तोमर
नई दिल्ली/सिंगापुर/लंदन:
भारत सरकार की नई कूटनीतिक पहल ‘ऑपरेशन सिंदूर विजय’ के तहत विभिन्न देशों में भारतीय प्रतिनिधिमंडल भेजे जाने की योजना ने राजनीतिक और विदेश नीति के गलियारों में हलचल पैदा कर दी है। यह मिशन केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका उद्देश्य रणनीतिक सहयोग, आर्थिक समझौते और वैश्विक मंचों पर भारत की मजबूत उपस्थिति बनाना है।
प्रवासी भारतीयों की नजर से:
सिंगापुर में बसे उद्यमी राजीव मेहता कहते हैं, “हम वर्षों से यहां भारतीय संस्कृति का झंडा उठाए हुए हैं, लेकिन यदि भारत सरकार की ओर से आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल यहां आए, तो यह हमें और हमारे बच्चों को गर्व का अनुभव कराएगा।”
वहीं यूके के बर्मिंघम शहर में बसे प्रवासी नेता नूपुर शर्मा का मानना है, “ऐसे मिशन से भारत की छवि और भी सशक्त होगी, खासकर जब यह यहां के विश्वविद्यालयों और बिजनेस नेटवर्क में भारतीय भागीदारी को बढ़ावा देगा।”
विशेष क्षेत्रीय फोकस:
सरकार इस मिशन के लिए इंडो-पैसिफिक, खाड़ी देश, अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दे रही है। खासकर खाड़ी देशों में लाखों भारतीय प्रवासी काम करते हैं। वहां सांस्कृतिक जुड़ाव और दूतावास स्तर पर संवाद बढ़ाना भारत की सामाजिक और आर्थिक रणनीति का हिस्सा बन सकता है।
ऑस्ट्रेलिया-भारत संबंधों पर असर:
हाल ही में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए व्यापार समझौते के बाद अगर भारत का प्रतिनिधिमंडल वहां सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंधों को लेकर जाता है, तो यह संबंध और भी गहरे हो सकते हैं।
भारत के लिए क्या लाभ?
सॉफ्ट पावर के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन
डायस्पोरा डिप्लोमेसी के माध्यम से भारतीय मूल के लोगों को जोड़ना
निवेश प्रोत्साहन और व्यापार सहयोग
विदेशी विश्वविद्यालयों, उद्योगों और संस्थानों से सीधा संवाद
ग्लोबल साउथ में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका को बल
निष्कर्ष:
‘ऑपरेशन सिंदूर विजय’ केवल एक कूटनीतिक मिशन नहीं, बल्कि भारत के भविष्य की वैश्विक सोच का हिस्सा है। प्रतिनिधिमंडल यदि ज़मीन से जुड़ी तैयारियों के साथ जाए और संवाद को दिखावे की बजाय नीतिगत रूप दे, तो यह अभियान भारत को वैश्विक नेतृत्व की पंक्ति में मजबूती से खड़ा कर सकता है।