*मतलबपरस्ती के रंग में रंगे लोग आज सारे तरबतर मिलते हैं..!*
*जहां तक नज़र जाती वहां तक सब के सब बाज़ीगर मिलते हैं..!*
*किसी के दिल को अपना घर समझने की भूल मत करना..!*
*मैंने देखा जिसने ये जुर्रत की वह तो सारे गमों से तर मिलते हैं..!*
*अजब-गजब मंज़र है आज के दौर का कुछ समझ नहीं आता..!*
*गुनाहगार सर उठाएं चलते और बेकसूर झुकाएं सर मिलते हैं..!*
*पक्के घरों में कहां अब मिट्टी के घरों सी आत्मीयता मिलती है..!*
*अपनेपन की मह़क विहीन आज तो सारे पक्के घर मिलते हैं..!*
*कहने को ये आदम जात है पर जानवर जैसी करते वारदात हैं..!*
*जिस्म मानव का मिला पर पशुता से लबरेज़ ये अंदर मिलते हैं..!*
अपली विश्वासू
लेखिका विशाल समाचार
सुधा भदौरिया
ग्वालियर मध्यप्रदेश