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मीडिया के राजस्व मॉडल का पुनर्निर्माण करें सांसद मनीष तिवारी की रायः एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित भारतीय छात्र संसद में कहा

मीडिया के राजस्व मॉडल का पुनर्निर्माण करें सांसद मनीष तिवारी की रायः एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित भारतीय छात्र संसद में कहा
राजकुमार रावत को आदर्श युवा विधायक सम्मान से नवाजा गया

पुणे: मीडिया पर अतिरिक्त उपद्रव को कम करने के लिए मीडिया के राजस्व मॉडल को बदलने की जरूरत है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद मनीष तिवारी ने शनिवार को कहा कि सभी तरह के सोशल मीडिया पर वित्तीय लेनदेन में पारदर्शिता लानाज जरूरी है.
भारतीय छात्र संसद फाऊडेशन, एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट और एमआईटी वर्ल्ड पीस युनिवर्सिटी, पुणे के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय भारतीय छात्र संसद के १२वें संस्करण के पांचवे सत्र में भारतीय मीडियाः शोर द्वारा शासित या कानून द्वारा शासित के विषय पर वे बोल रहे थे.
इस मौके पर इंडिया टुडे के संपादक सौरभ द्विवेदी, केयू के संस्थापक अध्यक्ष अप्रमेय राधाकृष्ण, प्रसिद्ध पत्रकार आशुतोष, सामाजिक कार्यकर्ता शार्मिला इरोम, कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ अंशुल अविजीत और मशहूर गायिका हेमा सरदेसाई उपस्थित थी. कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटीके संस्थापक अध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई.
यहां पर एमआईटी डब्ल्यूपीयू के कार्याध्यक्ष राहुल विश्वनाथ कराड और कुलपति डॉ. आर.एम चिटणीस मौजूद थे.
इस सत्र के दौरान राजस्थान के डूंगरपुर से भारतीय ट्राइबल पार्टी के राजकुमार रावत को आदर्श युवा विधायक पुरस्कार से नवाजा गया.
मनीष तिवारी ने कहा, जब मीडिया विज्ञापन राजस्व पर निर्भर है, तो वांछित पारदर्शिता देखना मुश्ेिकल है. सोशल मीडिया की गति और प्रभाव को देखते हुए इन प्लेटफार्म को अधिक सावधानी और संवदेशनशीलता से संभालने की आवश्यकता है. लेकिन अब सोशल मीडिया झूठ, भ्रामक बयानों, गलत सूचनाओं का विश्वविद्यालय बन गया है. दूसरों के विचारों के प्रति अनादर बढ रहा है. असहिष्णुता अधिक है. हम तस्वीर को बदलने के लिए मीडिया को अपने राजस्व मॉडल को मौलिक रूप में बदलने की जरूरत है.
सौरभ द्विवेदी ने कहा, बढते हंगामे की सही आवाज सुनने की आज जरूरत है. पत्रकार, प्रशासक, राजनीतिक नेता, शिक्षक, सही सवाल पूछने के लिए सामाजिक दिमाग को गहरा करना मीडिया की जिम्मेदारी है. मीडिया का काम है कि वह लोगों को परस्पर विरोधी विचारों का भी सन्मान करना सीखें और सिखाएं. यह सच है कि मीडिया इस जिम्मेदारी को नहीं निभा रहा है.
अप्रमेय राधाकृष्ण ने कहा, भारत में सोशल मीडिया का प्रसार और गति चिंता का विषय है. यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि अधिकांश सोशल मीडिया का स्वामित्व विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पास है. उनका मकसद समाज को प्रभावित करना या अपने स्वयं के एजेंडे को आगे बढ़ाना है. निकट भविष्य में, प्रत्येक देश के अपने स्वतंत्र सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म होंगे.
आशुतोष ने कहा, हमारी एक समृध्द परंपरा और संचित दर्शन है. लेकिन अगर हम शांति के महत्व को नहीं समझते है, तो केवल अराजकता ही रह जाती है. जैसा कि वर्तमान तस्वीर है. मीडिया में आक्रोश इसी बात का संकेत है. हमें मीडिया को समझने की जरूरत है. एम समय की बात है आवाज ने समाज को जगाया है. नारेबाजी, सत्याग्रह का आंदोलन, क्रांतिकारियों के नारे के शोर थे. लेकिन यह दंगा नही था. हमें इसका अंतर समझना चाहिए.
शर्मिला ने कहा, अगर छात्र सच्चाई की ताकत को समझ ले तो भविष्य में अच्छे नेता बन सकते है.
डॉ. अंशुल ने कहा कि मीडिया और संसद के बीच सामंजस्य की जरूरत है. आज के मीडिया उन्माद में गरीबों, आदिवासियों और उत्पीडितों की आवाजें कहीं नजर नहीं आती उसे सुना जाता चाहिए.
हेमा सरदेसाई ने अपने लोकप्रिय गीत की एक झलक दी. उन्होंने कहा कि प्रसिध्दि और धन के पीछे दौड़ने की इच्छा को त्याग देना चाहिए.
छात्र प्रतिनिधि के रूप में कौशल साहू , दिशा करमचंदानी, कृतिका देशपांडे, परिधि शर्मा ने प्रस्तुति दी.
अनामिका विश्वास ने स्वागत पर भाषण किया.
सूत्रसंचालन प्रा.डॉ. गौतम बापट चयनिका बसु और स्नेहा गाडगिल ने किया.

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