भारत से सीख ले इजरायल, जब सामना किसी बर्बर आतंकी संगठन से हो तो विवेक की भी उतनी ही आवश्यकता होती है
एक राष्ट्र के रूप में इजरायल औपचारिक रूप से 1948 में अस्तित्व में आया। जिस क्षेत्र में आज का इजरायल स्थित है वहां लगभग सौ वर्ष पहले वर्तमान फलस्तीनियों का बहुमत होता था। एक राष्ट्र के रूप में वैश्विक मानचित्र पर उभरने के तुरंत बाद इजरायल पर उसके इर्दगिर्द फैले अरब देशों ने चारों तरफ से उसपर हमला कर दिया।
इजरायल पर हमास के आतंकी हमले के बाद विश्व व्यवस्था एकाएक बदली हुई दिखी। इस हमले की गोपनीयता और घातकता ने सभी को चौंका दिया। इजरायल, जिसके पास मोसाद जैसा श्रेष्ठ खुफिया नेटवर्क है और जिसे तकनीकी रूप से सबसे उन्नत सशस्त्र बलों वाला देश माना जाता है, उस पर साधारण बुलडोजर, पैराग्लाइडर, मोटरसाइकिल और राइफलों के साथ आतंकियों ने भीषण हमला कर पूरी दुनिया को चौंका दिया।
इस हमले ने दुनिया को, विशेषकर बड़े और शक्तिशाली देशों को सतर्क करने का काम किया है। इससे यह समझ आया कि मजबूत दीवारें और यहां तक राकेटों तक को हवा में मार गिराने वाली आयरन डोम जैसी तकनीक भी आतंकी हमलों से बचने का सुनिश्चित सुरक्षित रक्षा कवच नहीं हैं।
एक राष्ट्र के रूप में इजरायल औपचारिक रूप से 1948 में अस्तित्व में आया। जिस क्षेत्र में आज का इजरायल स्थित है, वहां लगभग सौ वर्ष पहले वर्तमान फलस्तीनियों का बहुमत होता था। एक राष्ट्र के रूप में वैश्विक मानचित्र पर उभरने के तुरंत बाद इजरायल पर उसके इर्दगिर्द फैले अरब देशों ने चारों तरफ से हमला कर दिया। तब यह युवा राष्ट्र न केवल अपना अस्तित्व बचाने, बल्कि सीमाओं को पीछे धकेलने में भी कामयाब रहा। समय के साथ फलस्तीन दो प्रमुख क्षेत्रों-वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी तक ही सिमट कर रह गया। गाजा पट्टी की आबादी करीब 20 लाख और उसका आकार दिल्ली के एक चौथाई से भी कम है। यह दुनिया की सबसे घनी बसावट वाली मानवीय बस्तियों में से एक है।
पिछले 75 वर्षों में आम फलस्तीनी नागरिकों को लगातार किसी न किसी प्रकार के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा है। कभी-कभी इजरायली सुरक्षा बलों के हाथों तो कभी अपनी ही कट्टरपंथी सरकारों के हाथों। 2005 तक इजरायल गाजा को नियंत्रित कर रहा था। जब उसने गाजा पट्टी छोड़ दी तो फलस्तीनियों को 2006 में स्वतंत्र चुनाव का मौका मिला। दुर्भाग्य से उन्होंने हमास को सत्ता की कमान सौंपी। यह उनकी एक बड़ी गलती साबित हुई
बेहद कट्टर विचारों वाले हमास ने गाजा में लोकतंत्र को खत्म कर दिया। यहां 2006 के बाद से कोई चुनाव नहीं हुआ है। इन 17 वर्षों में यह क्षेत्र और भी गरीब और उत्पीड़ित हो गया है। हमास ने गाजा में लोगों के विकास के बजाय सुरंग खोदने और इजरायल पर हमला करने को प्राथमिकता दी है। हमास आतंकियों ने इतनी सुरंग बना दी हैं कि उनकी लंबाई दिल्ली मेट्रो के लिए बनाई सुरंगों से भी कहीं अधिक है। इन सुरंगों की गहराई 200 फीट से अधिक तक है। इन्ही सुरंगों में हमास के आतंकी गोला-बारूद छुपा कर रखते हैं। इनका इस्तेमाल हमास इजरायल पर तो करता ही है, जरूरत पड़ने पर अपने नागरिकों पर भी उनके प्रयोग से नहीं हिचकिचाता।
मौजूदा संघर्ष में गाजा के लोगों की मुश्किलें इस वजह से और बढ़ गई हैं कि इजरायल ने गाजा की पूरी तरह नाकाबंदी और पानी एवं बिजली आपूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया है। गाजा अब हमास द्वारा दागे गए राकेटों और इजरायल द्वारा गिराए गए बमों की चपेट में है, जहां अस्पताल, स्कूल और संयुक्त राष्ट्र आश्रय स्थल भी युद्ध क्षेत्र हैं। युद्ध में अब तक 5,000 बच्चों सहित 11,000 से अधिक फलस्तीनी मारे गए हैं।
आतंकी हमले के बाद दुनिया के प्रमुख देशों ने आत्मरक्षा के नाम पर हमास के खिलाफ कार्रवाई करने के इजरायल के अधिकार को मान्यता दी। यह इजरायल का नैतिक अधिकार था, लेकिन ऐसे किसी अधिकार के साथ जिम्मेदारियां भी जुड़ी होती हैं। जब हमास के खिलाफ युद्ध ने फलस्तीनियों के खिलाफ युद्ध का रूप ले लिया और बमबारी से टूटती इमारतें और घायल बच्चों के दृश्य स्क्रीन पर आने लगे तो इजरायल के प्रति दुनिया का समर्थन और सहानुभूति घटने लगी। शायद इसी कारण उसे संघर्ष विराम के लिए राजी होना पड़ा और वह भी तब, जब हमास 240 में 50 बंधक ही छोड़ने को तैयार है।
इजरायल भारत से यह सीख ले सकता है कि आतंकियों से कैसे निपटा जाए। हम दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंक से जूझते आए हैं, जिनकी संचालन गतिविधियां मुख्य रूप से गुलाम कश्मीर में केंद्रित हैं। उड़ी में सैन्य प्रतिष्ठान पर हमले के बाद राष्ट्रीय आक्रोश के बावजूद हमने जल्दबादी में कोई कदम नहीं उठाया और गुलाम कश्मीर की नागरिक बस्तियों पर बमबारी नहीं की। इसके बजाय हमने सर्जिकल स्ट्राइक के जरिये सुनियोजित प्रतिक्रिया दी। यह स्ट्राइक सटीक खुफिया जानकारी पर आधारित थी, जिसे हमारे सैनिकों ने अपने अद्भुत शौर्य एवं अद्यतन तकनीक के माध्यम से अंजाम दिया।
इसी प्रकार पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भी भारत ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक की, जिसमें किसी नागरिक बस्ती को निशाना नहीं बनाया गया। केवल आतंकियों के ठिकाने नष्ट किए गए। भारत ने संघर्ष के बीच भी नैतिक आधार कमजोर नहीं पड़ने दिया। इसी कारण विश्व बिरादरी भारत के पीछे खड़ी रही।
दूसरा सबक मजबूत नेतृत्व का है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू सात अलग-अलग दलों के गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं, जिनमें से प्रत्येक के विचार परस्पर विरोधी हैं। हाल के सर्वेक्षणों में उनकी लोकप्रियता घटकर 27 प्रतिशत रह गई है। ऐसी स्थिति में इजरायल केवल प्रतिक्रिया दे सकता है, नेतृत्व नहीं।
जब पुलवामा में आतंकी हमला हुआ तो भारत ने आतंकी शिविरों पर स्ट्राइक की योजना बनाने में 12 दिनों का समय लिया। देश के प्रधानमंत्री को देशवासियों का पूरा समर्थन प्राप्त था, जिन्होंने सही प्रतिशोध के लिए उन पर भरोसा किया था। नेतृत्व की इस ताकत ने भारत को उचित तरीके से जवाबी हमला करने में सक्षम बनाया। इसके विपरीत, इजरायल में फिलहाल नेतन्याहू के नेतृत्व में एक कमजोर और खंडित गठबंधन सरकार कार्यरत है, जो आंतरिक संघर्ष से जूझने के साथ ही न्यायपालिका के खिलाफ लड़ रही है।
जब किसी शक्तिशाली राष्ट्र का सामना एक बर्बर आतंकवादी संगठन से होता है तब पराक्रम के साथ विवेक की भी आवश्यकता होती है। विवेकपूर्ण निर्णय तब लिए जाते हैं, जब समाज में संयम हो। समाज में संयम तभी आ सकता है, जब नेतृत्व शक्तिशाली हो और उस पर उस राष्ट्र का विश्वास हो। नेतन्याहू और मोदी में यही अंतर है। नेतन्याहू ने मिलीजुली सरकार बनाई है। शक्ति उनके पास भी है, लेकिन उनके पास संयम और राष्ट्र का विश्वास नहीं है।