विश्वधर्मी प्रा. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड का गौरवगंध- प्रा. रतनलाल सोनग्रा
जितने कष्ट-कंण्टकों में है, जिनका जीवन-सुमन खिला, गौरवगंध उन्हे उतना ही, यत्र तत्र सर्वत्र मिला, राष्ट्रकवी मैथिलीशरण गुप्त की एक प्रसिध्द पंक्ति मेरे मित्र हमेशा अपने भाषणों में करते थे।
विश्वधर्मी डॉ. विश्वनाथ कराड को अमेरिका का सुविख्यात विश्वविद्यालय – ब्रिघंम यंग युनिवर्सिटी द्वारा विश्वशांति के सद्प्रयास में मानवता की सेवा करनेवाले शिक्षाविद् डॉ. विश्वधनाथ कराड को विद्यावाचस्पती की मानद उपाधि देकर २३ हजार छात्रों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में सम्मानित किया गया है। यह हम भारतीयों के लिए गर्व का क्षण था जब सैकड़ों वाद्यवृंदो ने उनके स्वागत में शांति गीत गाए।
डॉ. विश्वनाथ कराड एक ऐसे परिश्रमी सत्शील वैष्णव संप्रदाय के किसान परिवार से आते है। उनका छोटासा गाँव रूई रामेश्वर केवल देड हजार अबादी का है। अपनी शिक्षा की लगन से कुमार विश्वनाथ ने अत्यंत कष्टप्रद स्थिती में विद्यार्थी वसतीगृह में रहकर, लाल ज्वार की रोटी और गरम मिर्च को पानी के साथ खाकर अपनी भूख मिटायी। अपने छोटे भाई के साथ उनकी हमेशा बहस होती थी। वह उसे कलेक्टर बनने की सलाह देता था। उनके सामने कलेक्टर से बडा कोई व्यक्ति नही था। विश्वनाथ बचपन से भावुक और निर्भय थे। बचपन में ही माता सरस्वती का देहांत होनेपर उनकी बडी बहन प्रयाग अक्काने परिपालन पोषण का भार संभाला। इसके लिए प्रयाग अक्का ने अपने संसार से त्याग कर विरागिनी श्रमदेवी का रुप स्वीकार किया। प्रयाग अक्का की शिक्षा से और उनके सत्यशील आचरण सेे विश्वनाथ के मन से उनके लिए सदैव माता का रुप ही था। उनकी कही गई आज्ञा का पालन करने में विश्वनाथ ने कोई कमी नही रखी। विश्वनाथ ने सोलापूर के दयानंद महाविद्यालय में प्रवेश लिया और अभियांत्रिकी शिक्षा का प्रारंभ हुआ।
महाराष्ट्र की सांस्कृतिक राजधानी पुणे में वे अभियांत्रिकी महाविद्यालय में अध्यापक के रुप में उन्होंने कार्य किया। महाराष्ट्र टाईम्स में लेख लिखकर महाराष्ट्र में अभियांत्रिकी कॉलेजों की कमी की चर्चा की, और अशासकीय संस्थाओं द्वारा शिक्षा का प्रसार करने का विचार किया। यह विचार उन्हों ने महाराष्ट्र के सभी राजनेताओं को समझाया। पद्मभूषण वसंत दादा पाटील ज्यादा पढे लिखे नही थे। लेकिन लोगों के दुःख दर्द को समझनेवाले और खास ग्रामिण प्रबुध्दता के अग्रणी थे। उन्होंने तांत्रिक शिक्षा का महत्त्व समझा और अशासकीय अभियांत्रिकी महाविद्यालय को मान्यता दी। यह महाराष्ट्र में नये शैक्षणिक अध्याय का उद्घोष था। विश्वनाथ कराड ने यंत्र तंत्रादि विज्ञानम्, लोक कल्याण् साधनम्। एमआयटी संस्था की नीव रखी।
जिनका जीवन सुमन खिला।
विश्वनाथ की विद्याउपसना रंग लायी और उन्होंने अपनी अध्यात्म की अद्भुत विज्ञानशाला में नये नये अनुसंधान लिये। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ यह ऋषी दयानंद की वाणी अपनी संस्था में अभिनव रुप से विश्वनाथ कराड ने साकार करने का प्रयास किया। अपने महाविद्यालय का प्रारंभ ही ‘विश्वशांती की प्रार्थना’ से किया। पूर्ण परिसर पवित्रता के प्रतिकों से भर दिया। मानवी मूल्यों की प्रस्थापना करनेवाली दिव्य प्रेरणा से उन्होंने तत्त्वज्ञ संत श्री ज्ञानेश्वर और जगद्गुरु संत श्री तुकाराम की वाणी को इंद्रायणी नदी के किनारे संजीवन स्वरुप दिया। संत ज्ञानेश्वर की आलंदी का स्वरुपही उन्होंने बदल डाला, मानों वहाँ ज्ञानेश्वरजी का ‘पसायदान’ साकार हो उठा। वहाँ विश्वरुप दर्शन मंचपर प्रधानमंत्री अटल बिहारीजी की अध्यक्षता में विज्ञान संमेलन का आयोजन कर विज्ञान और अध्यात्म का संगमतीर्थ बना दिया।
विश्वरुप दर्शन मंच से लाखों वारकरी और संत सज्जनों का विचारदर्शन वहाँ से होता रहा, भारतरत्न लता मंगेशकर को ‘विश्वगानसम्राज्ञी’ की उपाधी दी गयी।
७०० मृदुंग कलाकारों का एक साथ बजवाकर श्री श्री रवी शंकर की उपस्थिती में ‘नादब्रह्म’ का साक्षात्कार करवाया।
गौरवगंध उन्हे उतनाही……
इन सभी कार्यो से विश्वनाथ जी की यशोगाथा चारो और फैला रही थी। एक ऐसी संस्था जो भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र और मानवीय सभ्यता का पूर्ण विवेक संजोकर ज्ञान कर्म और भक्ति का समन्वय कर अपनी पताका फहराने लगी। यह गौरवगंध उतनाही बढा जितना लोकमंगल कर विस्तार है। अनेक महानुभाव इस महा आयोजन में सम्मिलित होने अपनी जमीनों का दान देने लगे। अलग अलग लोक प्रतिनिधीयों ने अपने राज्यों में निमंत्रित कर जमीन प्रदान की। एक निष्ठावान शिक्षक पाँच विश्वविद्यालयों का कुलपति बन गया।
विश्व की महान् प्रयोगशाला
हिंदी चित्रपटसृष्टी के अभिनय सम्राट राजकपूर ने अपनी राजबाग विश्वनाथ कराड को सोंप दी। जिस में वहाँ उनका जो स्मारक बना और ‘विश्वशांती संगीत कला अकादमी’ साकार हो गयी। उज्जैन में अवंतिका विश्वविद्यालय का सपना पूर्ण हुआ। इन सभी महान कृतियोंपर विश्वनाथजी के कला प्रतिभा का संगम हुआ है।
विश्वराजबाग में एक अति विशाल दिव्य गुंबज का निर्माण किया जिसमें विश्व और भारत के सभी धर्मवेत्ता, संत और महामानवों की प्रतिमाओं के साथ विश्व के महान वैज्ञानिकों की प्रतिमाएँ प्रस्थापित की गई। यह प्रयोगशाला विश्व की सबसे अनूठी और विश्व का सबसे बडा गुंबज निर्माण करनेवाली अलौकिक वास्तु बन गई।
यंत्र तंत्रादि विज्ञानम् लोक कल्याण साधनम्।
आजतक विश्वनाथजी को प्रजापिता ब्रह्मकुमारी विश्वविद्यालय के ‘विश्वरत्न’ से लेकर हजारो पुरस्कार मिले है। परंतु अमरिका, इंग्लैंड में उनका जो सम्मान हुआ वह भारतीय प्रतिभा का विश्वगौरव था।
विश्वशांती रत्न
आज सभी पुण्यनगरी निवासी उनका भव्य नागरी सम्मान करते हुए उन्हें सानंद अभिवादन कर विश्वशांती रत्न देकर अपना गौरव कर रहे है। आज विश्वनाथजी का सुयश यत्र तत्र सर्वत्र फैल रहा है। विश्वशांती की और ले जानेवाले चरणों को भारतीय जनता आशामयि दृष्टी से देख रही है।