एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (एपीआई) और एबॅट ने भारत में पहला एंजाइना जागरूकता सप्ताह मनाया
पुणे, : एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया (एपीआई) ने आज दुनिया की प्रमुख हेल्थकेयर कंपनी एबॅट के साथ मिलकर भारत में ‘एंजाइना जागरूकता सप्ताह’ की शुरुआत की है। यह जागरुकता सप्ताह 19 जून से 25 जून तक चलेगा। इस अभियान का उद्देश्य एंजाइना की शुरुआत में पहचान होने और इसे बेहतर ढंग से मैनेज किए जाने के महत्व को सामने लाना है। इससे हृदय संबंधी घटनाएं होने के जोखिम को कम करने और मरीजों के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करने में मदद मिलेगी। इस सप्ताह की शुरुआत करते हुए सामूहिक रूप से एबॅट द्वारा तैयार ऐक्शन प्लान ‘ऑप्टिमल ट्रीटमेंट ऑफ एंजाइना (ओपीटीए): द नीड ऑफ द ऑवर’ (‘एंजाइना का बेहतरीन उपचार (ओपीटीए): समय की जरूरत’) को लॉन्च किया गया। यह ऐक्शन प्लान इस बीमारी की समय रहते पहचान होने और उसके इलाज के बेहतरीन मानकों के बारे में बताता है।
एबॅट इंडिया के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अश्विनी पवार ने कहा, “भारत में आज भी एंजाइना एक ऐसी बीमारी है जिसका निदान बेहद कम है। इसके परिणामस्वरूप, कई लोगों को उचित इलाज नहीं मिल पाता है। हृदय संबंधी बीमारियों के बढ़ते बोझ और 2012 से 2030 के बीच iv देश पर इसके कारण होने वाले लगभग 2.17 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के खर्च को देखते हुए, इस चुनौती का समाधान करना महत्वपूर्ण है। एसोसिएशन ऑफ फिजिशियंस ऑफ इंडिया के सहयोग से, हम भारत में ‘एंजाइना जागरूकता सप्ताह’ की शुरुआत कर जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, ताकि एंजाइना की समय पर पहचान करने के साथ ही बीमारी को बेहतर ढंग से मैनेज करने में मदद मिल सके।”
एंजाइना की स्थिति में मरीज को सीने में घबराहट, दर्द, भारीपन या दबाव महसूस होता है, जो इस कोरोनरी आर्टरी बीमारी का सामान्य शुरुआती लक्षण है। हृदय रोग से संबंधित मृत्यु दर के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है, और देश में पुरुषों और महिलाओं में वार्षिक मृत्यु दर में क्रमश: 20.3% और 16.9% हिस्सेदारी सीवीडी की है।[i] इस वजह से यह एंजाइना से संबंधित चेतावनी संकेतों पर ध्यान देने की अहमियत को विशेष रूप से सामने लाता है, जिसमें चक्कर आना, किसी की बांहों या पीठ में दर्द समेत अन्य लक्षणों का अनुभव शामिल है। पुरुषों के मुकाबले विशेष रूप से महिलाओं में मोटापा एंजाइना के लिहाज से बड़ा रिस्क फैक्टर है। वहीं डायबिटीज या मधुमेह से पीड़ित लोगों में भी कोरोनरी बीमारियों के विकसित होने की संभावना ज्यादा होती है।
कॉम्प्रीहेंसिव ऐक्शन प्लान एंजाइना के बारे में सारी जानकारियां प्रस्तुत करता है, जिसमें इस बीमारी बोझ से लेकर प्रमुख चुनौतियों और डॉक्टरों के विचार करने के लिए कई सिफारिशें तक शामिल हैं। भारतीयों में किसी भी अन्य आबादी की तुलना में सीएडी मृत्यु दर 20-50% अधिक है। साथ ही, भारत में पिछले 30 वर्षों में सीएडी से संबंधित मृत्यु दर और विकलांगता दर दोगुनी हो गई है।