पूणे

भक्ति सर्वश्रेष्ठ है और इसमें शक्ति समाहित है

भक्ति सर्वश्रेष्ठ है और इसमें शक्ति समाहित है

हभप. यशोधन महाराज साखरे महाराज के विचारः

पालकी प्रस्थान के अवसर पर लोक शिक्षा अभिनव कार्यक्रम का समापन

 

पुणे,:  भक्ति सर्वोत्तम है और इसमें शक्ति समाहित है. ज्ञान से भक्त को असानी से शक्ति मिलती है, लेकिन यदि ज्ञान के प्रति भक्ति आंतरिक हो तो यह सुख का सर्वोत्तम स्त्रोत है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण भक्त प्रल्हाद का हो सकता है. ऐसे विचार हभप यशोधन महाराज साखरे ने व्यक्त किये.

विश्वशांति केंद्र (आलंदी), माइर्स एमआईटी, पुणे और श्री क्षेत्र आलंदी देहू परिसर विकास समिति ने श्री संत ज्ञानेश्वर तुकाराम ज्ञानतीर्थ विश्वरूप दर्शन मंच श्री क्षेत्र आलंदी के सहयोग से लोकतंत्र के लिए सार्वजनिक शिक्षा पर यूनेस्को अध्यासन नवाचार के तहत पालकी प्रस्थान अवसर पर,वह मानवाधिकार, शांति और सहिष्णूता पहल के उद्घाटन मौके पर बोल रहे थे.

इस अवसर पर विश्वशांति केंद्र (आलंदी), माईर्स एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड, श्री क्षेत्र आलंदी देहू परिसर विकास समिति के समन्वयक प्रो.स्वाति कराड चाटे, नागपूर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एन.पठाण, एमआईटी डब्ल्यूपीयू के प्र कुलपति डॉ. मिलिंद पांडे, प्रसिद्ध गप्पष्टककार डॉ. संजय उपाध्ये, हभप डॉ. सुदाम महाराज पानेगांवकर उपस्थित थे.

हभप यशोधन साखरे महाराज ने कहा, अध्यात्मिक पथ पर चलते समय दो चीजों को समझना जरूरी है एक इच्छा और दूसरी रूचि होती है. संतों का जुनून अनुकरणीय है. इसमें अंतरिक की भलाई भी शामिल होती है. वारी सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करती है. वारी भक्त का नजरिया बदल देती है और वह बदलाव जीवन में खुशियां लेकर आता है.

डॉ. संजय उपाध्ये ने कहा, माऊली की समाधि के पास भक्त को सुख की अनुभूति होती है. इसमें जीवन में खुशहाली आती है. व्यावहारिक और आध्यात्मिक जगत में कर्म को अधिक प्राथमिकता दी गई है. व्यक्ति की बुद्धि कर्म के अनुसार बदलती है. इसलिए उस पर अधिक ध्यान केंद्रित करें. ऐसे में मन को खुश रखने के लिए सभी उपलब्धियों का एकमात्र कारण जो मिलता है उसे खुशी कहना है.

इसके बाद दार्शनिक संत ज्ञानेश्वर महाराज के जीवन को दर्शाता लेखक लक्ष्मण घुगे द्वारा लिखित आध्यात्मिक नाटक सुवर्ण पिंपल प्रस्तुत किया गया. कीर्तन के बाद इंद्रायणी माता की आरती हुई. संचालन हभप शालिकराम खंडारे ने किया. हभप महेश महाराज नलावडे ने आभार माना.

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