कविता शीर्षक — सबका जीवन एक समान नही होता
जीवन सबका एक समान नही होता
किसी को मकान तो
किसी को छत नसीब नही होता
लोगों के पसंदीदा व्यंजन हुआ करते हैं
किसी को एक वक्त की
रोटी नसीब नही होती
लोग एक बार कपड़े पहनने के बाद
उन्हे पुराना कह देते है
इन्ही पुराने कपड़ो का
वंचित लोगों को मिलना
उनके लिए किसी त्योहार से कम नही होता
By प्रवीण मांगलिया
सांचोर, राजस्थान