इटावाहादसा

योगी राज में …इटावा में पत्रकारों का अपमान! ADM से भिड़ंत, लोकतंत्र पर सीधा हमला?

योगी राज में …इटावा में पत्रकारों का अपमान! ADM से भिड़ंत, लोकतंत्र पर सीधा हमला?

 

इटावा शिवराज सिंह राजपूत 

उत्तर प्रदेश के इटावा में उस वक़्त हालात तनावपूर्ण हो गए जब शहीद सूरज के पार्थिव शरीर को फ्रीज़र में रखने को लेकर पत्रकारों और प्रशासन के बीच तीखी झड़प हो गई। पत्रकार केवल अपना कर्तव्य निभा रहे थे, लेकिन प्रशासन को शायद सच्चाई दिखाना रास नहीं आया।

एक पत्रकार द्वारा घटनास्थल की वीडियो रिकॉर्डिंग किए जाने पर जब प्रशासनिक अधिकारी ने उसे रोका और जोर से धक, तो मौके पर मौजूद पत्रकारों का समूह भड़क उठा। देखते ही देखते बात तीखी बहस और टकराव तक पहुंच गई।

 

ADM अभिनव रंजन श्रीवास्तव पर आरोप 

तस्वीरों में ADM अभिनव रंजन श्रीवास्तव पत्रकारों से बहस करते साफ दिखाई दे रहे हैं। पत्रकारों का आरोप है कि ADM और अन्य अधिकारियों ने उन्हें  अपमानित किया, जबरदस्ती कवरेज रोकने की कोशिश की और दबाव बनाने का प्रयास किया।

 

क्या यही है लोकतंत्र का चेहरा?जहां एक ओर सरकार शहीदों के सम्मान’ की बात करती है,वहीं दूसरी ओर उनके पार्थिव शरीर की कवरेज करने पहुंचे पत्रकारों से इस तरह का बर्ताव किया जा रहा है।

 

सवालों के घेरे में प्रशासन 

 

क्या अब पत्रकारों को शहीदों की रिपोर्टिंग करने से भी रोका जाएगा?

क्या प्रशासन को सच्चाई उजागर होने से डर लगने लगा है?और अगर ADM जैसे अफसर ही अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने लगें, तो जवाबदेही कौन तय करेगा?

पत्रकारों में भारी रोष अपमानित पत्रकारों ने साफ कहा है कि वे इस मामले को ऐसे नहीं छोड़ेंगे। अब पूरे प्रदेश के पत्रकारों में नाराजगी है और प्रशासन की इस मनमानी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने की तैयारी है।

मांग उठने लगी है: ADM को हटाया जाए, और पत्रकारों से माफ़ी मांगी जाए।

धक्का देकर गिराया जा रहा, तो कहीं खुलेआम गालियां देकर अपमानित किया जा रहा है। यह सब सिर्फ इसलिए कि पत्रकार भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं और प्रशासन से सवाल पूछते हैं।

 

क्या अब सवाल पूछना गुनाह बन गया है?

भ्रष्टाचार की पोल खोलने वाले पत्रकारों को सरेआम सज़ा दी जा रही है। सत्ता के संरक्षण में चल रहे इस दमनचक्र ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को कमजोर करने का काम किया है। सवाल यह है कि क्या अब सत्ताधारी दल की आलोचना करना अपराध बन गया है?

 

पत्रकारिता संरक्षण कानून पर खामोशी क्यों?

वर्षों से पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग की जा रही है, लेकिन आज तक इस पर कोई ठोस क़दम नहीं उठाया गया। अगर पत्रकारिता को सच बोलने की आज़ादी नहीं मिलेगी, तो आम जनता के अधिकारों की रक्षा कौन करेगा?

 

लोकतंत्र की हत्या का संकेत?

जिस देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं, वहाँ लोकतंत्र कैसे सुरक्षित रह सकता है? ऐसे समय में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार न केवल पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे, बल्कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी करे।

अब समय है जवाबदेही तय करने का।

पत्रकारिता कोई अपराध नहीं, बल्कि जनता की आवाज़ है। इस आवाज़ को दबाने की कोशिश लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।

 

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