
महाराष्ट्र में ‘जय गुजरात’ की गूंज – क्या अब अस्मिता का सौदा हो रहा है? :एच डॉ. हुलगेश चलवादी, प्रदेश महासचिव, बहुजन समाज पार्टी
ब्यूरो विशाल समाचार पुणे
पुणे में हाल ही में हुए एक उद्घाटन समारोह में जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंच से ‘जय गुजरात’ का नारा लगाया, तो यह केवल एक वाक्य नहीं था – यह एक संकेत था। उस मंच पर महाराष्ट्र की ज़मीन पर, महाराष्ट्र के नागरिकों के लिए परियोजना शुरू की जा रही थी, लेकिन जयजयकार गुजरात की हो रही थी। यह दृश्य न सिर्फ चौंकाने वाला था, बल्कि महाराष्ट्र की सांस्कृतिक अस्मिता पर एक सीधी चोट था।
बहुजन समाज पार्टी यह मानती है कि यह घटना राज्य के स्वाभिमान के साथ समझौते का उदाहरण है। जिस नेतृत्व को महाराष्ट्र की जनता ने सत्ता सौंपी, वह अब किसके इशारों पर बोल रहा है? किसके सम्मान में ‘जय गुजरात’ के नारे महाराष्ट्र की धरती पर लगाए जा रहे हैं?
यह तथ्य छिपा नहीं है कि राज्य की सत्ता का समीकरण रातों-रात कैसे बदला गया। लोकतंत्र की मर्यादाओं को किनारे रख, कैसे रात के अंधेरे में राजनीतिक गठजोड़ हुआ, और कैसे एक नई सेना खड़ी की गई, यह महाराष्ट्र की जनता भूली नहीं है।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का ‘जय गुजरात’ बोलना इस बात का प्रतीक है कि अब निर्णय लेने की शक्ति महाराष्ट्र में नहीं रही। वह किसी और राज्य के नेताओं की कृपा पर टिकी है। क्या यही महाराष्ट्र की परंपरा है? क्या यही छत्रपति शिवाजी महाराज, फुले-आंबेडकर की भूमि से अपेक्षित था?
जब राज्य से नौकरियां, केंद्रीय कार्यालय, और बड़े प्रोजेक्ट गुजरात स्थानांतरित होते हैं, और उस पर कोई आवाज़ नहीं उठाता—बल्कि उसी राज्य की जय-जयकार करता है—तो यह न केवल राजनीतिक अधीनता है, बल्कि यह सामाजिक चुप्पी का भी घातक संकेत है।
बहुजन समाज पार्टी यह स्पष्ट करना चाहती है कि यह सिर्फ मराठी अस्मिता का नहीं, बल्कि सभी वंचितों और मेहनतकशों के आत्मसम्मान का सवाल है। महाराष्ट्र के युवाओं से रोज़गार छीना जा रहा है, उद्योग छिने जा रहे हैं, लेकिन सत्ता में बैठे नेता ‘जय गुजरात’ कहकर दिल्ली और गांधीनगर को खुश करने में लगे हैं।
यदि आज महाराष्ट्र चुप रहा, तो कल और भी राज्य इस अपमानजनक परिपाटी का शिकार बनेंगे।
समय आ गया है कि जनता यह पूछे — जय महाराष्ट्र कब कहा जाएगा? या अब सत्ता में बैठने की कीमत जय गुजरात कहना ही रह गई है?