*दिल का आंगन आज के दौर में कौन हरा भरा रखता है..!*
*खुन्नसे से बेशुमार मिलती और मोहब्बतें जरा जरा रखता है..!*
*तबीयत मिलनसार मिज़ाज गुलज़ार रखते थे लोग कभी..!*
*आज आदमी जाने क्यों अपना मिज़ाज खुरदुरा रखता है..!*
*अब तो दिल के फ़ैसले भी दिमाग़ से लेने लगे हैं सभी..!*
*इसी वज़ह से तो हर कोई अपना चरित्र दोहरा रखता है..!*
*होते कुछ दिखते कुछ बड़े बेढंगे से किरदार रखते हैं सब..!*
*जिसे देखो वो आज अपने चेहरे पर चेहरा रखता है..!*
*जिसके पास ईमान है उसी का जीवन सफ़र आसान है..!*
*पर आज कौन अपने ईमान को साफ़ सुथरा रखता है..!*
अपली विश्वासू
सुधा भदौरिया
लेखिका विशाल समाचार
ग्वालियर मध्यप्रदेश