पूणे

२०४७ के भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर मंथन होना चाहिए डॉ. अभय जेरे की रायः

२०४७ के भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर मंथन होना चाहिए
डॉ. अभय जेरे की रायः
२८ वें दार्शनिक संतश्री ज्ञानेश्वर तुकाराम स्मृति व्याख्यान श्रृंखला का समापन
योग गुरू मारुति पाडेकर को विशेष जीवन पुरस्कार

पुणे,:  भविष्य के बारे में सोचते हुए वर्ष २०४७ में भारतीय शिक्षा प्रणाली कैसी होगी. हर किसी को इसके बारे में सोचना चाहिए. वैश्विक शिक्षा प्रणाली में जीवित रहने के लिए हम विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे. उस समय शिक्षकों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण होगी. यह राय केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के उपाध्यक्ष डॉ. अभय जेरे ने रखी.
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी, विश्वशांति सेंटर(आलंदी), माइर्स एमआईटी, पुणे और संतश्री ज्ञानेश्वर तथा संतश्री तुकाराम महाराज स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के संयुक्त तत्वावधान में युनेस्को अध्यासन तहत आयोजित २८वें दार्शनिक संतश्री ज्ञानेश्वर-तुकाराम स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के समारोप समारंभ में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
इस अवसर पर पद्मभूषण डॉ. दीपक धर, अभिजित पानसे, उद्यमी ईश्वरचंद्र परमान, डॉ. राजेंद्र शेंडे एवं हिंदी सलाहकार समिति सदस्य डॉ. योंगेद्र मिश्र विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे. अध्यक्षता के रूप में विश्वशांति केंद्र (आलंदी), माईर्स एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई.
साथ ही एमआईटी एडीटी यूनिवर्सिटी के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.मंगेश तु. कराड एवं डब्ल्यूपीयू के सलाहकार डॉ.संजय उपाध्ये उपस्थित थे.
इस मौके पर योग गुरू मारूति पाडेकर को विशेष जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया.य सत्कार को जवाब देते हुए कहा कि, कराड सर की दूरदर्शिता के कारण मुझे डब्ल्यूपीयू में जगह मिली. योग हर व्यक्ति तक कैसे पहुचे इस पर हमें काम करना है.
डॉ. अभय जेरे ने कहा, प्रधानमंत्री के मुताबिक वर्ष २०४७ में भारत को एक उन्नत राष्ट्र और समृद्ध आर्थिक व्यवस्था बनाने की दिशा में काम करना होगा.आज भारत की अर्थव्यवस्था लगभग ४ अरब डॉलर तक पहुंच गई है. इसे लगभग १० अरब डॉलर तक पहुंचाना है.
आज दुनिया में गिग इकॉनॉमी धीरे धीरे शुरू हो गई है. इसमें एक कर्मचारी दो तीन जगह काम कर सकता है. अब यह पद्धति माइक्रोसॉफ्ट के साथ अमेरिका में शुरू हो गई है. इसे भारत में आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा. गिग इकॉनॉमी में एक प्रोजेक्टस पर काम करना होगा. इसलिए शिक्षा को उसी दिशा में केंद्रित किया जाना चाहिए.
पद्मभूषण डॉ. दीपक धर ने कहा, मानव के कल्याण के लिए विज्ञान की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. लेकिन साथ ही आध्यात्मिकता की भी आवश्यकता है. धर्म जीवन में आचरण के लिए है. आज के छात्रों को विज्ञान के साथ साथ आध्यात्मिकता भी सिखाने की जरूरत है.
प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि स्वार्स्थ और अहंकार एक साथ आते हैं और यह विनाश की ओर ले जाता है. इसलिए जब संत ज्ञानेश्वर की ज्ञानेश्वरी और भगवान गौतम बुद्ध के पंचशील का समन्वय होगा, तभी मानव जाति का कल्याण होगा. साथ ही, अगले वर्ष से एमआइटी में प्रथम और द्वितीय आने वाले छात्रों को व्याख्यान श्रृंखला में शामिल करेंगे.
आचार्य डॉ. योगेंन्द्र मिश्रा ने कहा, जहां विज्ञान समाप्त होता है, वहां आध्यात्मिकता शुरू होती है. इसलिए व्यक्ति को जीवन में निःस्वार्थ होना चाहिए और सेवा को प्राथमिकता देनी चाहिए. व्यक्ति को भगवान को बाहर नहीं, बल्कि अपने दिल के भीतर खोजना चाहिए. अगर किसी का दिल शुद्ध है, तो शांति भीतर ही मिल जाएगी. डॉ. विश्वनाथ कराड द्वारा किए गए अपार कार्यों को देखते हुए उनके नाम पर एक शोध केंद्र शुरू किया जाना चाहिए.
ईश्व परमार ने कहा, यदि मानसिक तनाव हो तो व्यक्ति की प्रगति रूक जाती है. इसके लिए जीवन में आध्यात्मिकता बहुत जरूरी है और इसे अपने दिल में बिठा लेना चाहिए. अगर आप यह तय कर ले कि जीवन का लक्ष्य क्या है तो जीवन कठिन नहीं बल्कि बहुत आसान है और काम करें. साथ ही अच्छे स्वास्थ्य के लिए हर दिन ८ घंटे की नींद लें और आध्यात्मिकता महत्वपूर्ण हैं.
राहुल विश्वनाथ कराड ने अपने संदेश में कहा कि यह शब्दकोष व्यापक है. जाति धर्म संप्रदाय से परे जीवन जीने की एक आदर्श शैली विकसित करने का काम किया जा रहा है. डॉ. विश्वनाथ कराड की प्रेरणा से शुरू हुए इस बीज को आज बरगद में तब्दील होते देखना बेहद खुशी की बात है.
इसके बाद अभिजीत पानसे ने अपने विचार प्रस्तुत किये.
विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आर.एम.चिटणीस ने परिचय दिया.
प्रो. गौतम बापट ने सूत्रसंचालन और व्याख्यान श्रृंखला के मुख्य समन्वयक प्रो.डॉ. मिलिंद पांडे ने आभार माना.

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