महात्मा गांधी शब्द में ही शक्ति का प्रतीक उल्हास पवार के विचार: राष्ट्रपिता गांधी को एमआयटी डब्ल्यू पी यू में भावपूर्ण श्रद्धांजली
पुणे: महात्मा गांधी के शब्दों में ताकत है. वह दया, करुणा और प्रेम के शांति दूत थे. वह एकमात्र व्यक्ति हैं जिन पर दुनिया के १ लाख से अधिक बुद्धिजीवियों ने किताबें लिखी हैं और विश्व शांति का संदेश दिया है. यह विचार महाराष्ट्र विकास निगम के पूर्व अध्यक्ष उल्हास पवार ने रखे.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ७६वीं पुण्य तिथि के अवसर पर एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में वे बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रोफेसर डॉ. विश्वनाथ दा कराड ने निभाई.
इस अवसर पर आचार्य रतनलाल सोनग्रा, नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एम.पठान, डब्ल्यूपीयू के सलाहकार डॉ. संजय उपाध्याय, डब्ल्यूपीयू के कुलपति डॉ.आर.एम चिटणिस और डॉ. पबशेट्टी तथा छात्र प्रतिनिधि भी उपस्थित थे.
उल्हास पवार ने कहा, १४३ देशों में महात्मा गांधी जी की प्रतिमाएं लगाकर विश्व शांति का संदेश दिया जा रहा है. उनके कार्य को मान्यता देते हुए यूएनओ ने २ अक्टूबर को अहिंसा दिवस घोषित किया है. वर्तमान समय में नई पीढ़ी को गांधी जी को समझने की जरूरत है. गांधीजी के जीवन पर प्रकाश डालने वाले एमआईटी के छात्र विश्व शांति की ओर बढ़ रहे हैं.
डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने कहा, महात्मा गांधीजी ने निरंतर आत्ममंथन किया है. आज उनके इस विचार को अपने जीवन में उतारने की जरूरत है. वह एक पवित्र आत्मा हैं क्योंकि उन्होंने अंतिम समय में अपने मुख से हे राम, हे राम, हे राम शब्द निकाले थे. अब गांधीजी के सिद्धांतों पर विचार करने का समय है. पूरी दुनिया को भारतीय संस्कृति, दर्शन, परंपरा और वसुधैव कुटुंबकम का संदेश है.
रतनलाल सोनग्रा ने कहा, महात्मा गांधीजी ने समाज को साहस देकर संघ का निर्माण किया. अहिंसा का नया नारा देकर देश की भाषा बदल दी गई. उन्होंने अपने आचरण से दिखाया कि सच्ची अहिंसा और मानवता सबसे बड़ी ताकतें हैं.
डॉ.एस.एम.पठान ने कहा, गांव की ओर चलो यह सबसे शक्तिशाली नारा दिया था साथ ही, उन्होंने विदेशी कपड़ों को जलाकर स्वदेशी जागरूकता भी पैदा की है.
डॉ. संजय उपाध्या ने कहा, गांधी जी की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए नई पीढ़ी को आगे आना होगा. इसके लिए आपको खुद को जागृत रखना होगा. जब कोई व्यक्ति सार्वभौमिक रूप से सोचता है, तो इससे व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र पर बहुत बड़ा फर्क पड़ता है.
डॉ. आर. एम. चिटणिस ने प्रस्तावना प्रस्तुत की .इस अवसर पर छात्र शौनक पाटिल, ओम जोशी, अदिति शर्मा, अर्थव रासकर, पीयूष पाटिल और ज्ञानेश्वरी ने गांधीजी के जीवन पर विचार व्यक्त किये और उनके सिद्धांतों को जीवन में अपनाने को कहा.
संचालन डॉ. मिलिंद पात्रे और प्रो. पबशेट्टी ने आभार माना.