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रवीश कुमार की दोगलई कब समाप्त होगी,इनके अनुसार सारा देश बेकार,thelankadahan

रवीश कुमार हमेशा से दोहरे मापदंड के पत्रकार है,सरकार ने भाव नहीं दिया अपने प्रवक्ताओं को इनके कार्यक्रम में भेजना बंद कर दिया तो इन्होने शुरू कर दी वामपंथी पत्रकारिता,इनके प्रोग्राम न केवल सरकार के खिलाफ बल्की देश के खिलाफ भी होते है इन्हे पाकिस्तान और चाइना की तरफदारी करने में भी बहुत मजा आता है, इन्हे अपने देश में बस खामियाँ ही खामियाँ नज़र आती है, मोदी अच्छा करे तो गाली ख़राब करे तो गाली, भाई फिर करे तो क्या करे? इन्हे लगता है की इन्होने पत्रकारिता करके देश के ऊपर अहसान कर दिया है झूठ बोलने में बहुत बड़े खिलाड़ी है आईये हमारे खास प्रोग्राम दोगलापंथी में जानते है कुछ खास इनके बारे में,
ऐसे बहुत कम दिन बचे हैं जिस दिन पत्रकारिता के नाम पर कोई कॉमेडी नहीं होती। पत्रकारिता पर बकैती का भार हर दिन बढ़ता ही जा रहा है, अब बिना रवीश की बकवास के सोमवार या बुधवार आता ही नहीं है। कोई दिन ऐसा नहीं आता जब फेसबुक या टीवी पर रवीश कुमार देश में बन रहे कानून, कानून के ड्राफ्ट, ड्राफ्ट के पन्ने, पन्नों की इंक, इंक की क्वालिटी, क्वालिटी आइसक्रीम, आइसक्रीम की डंडी, डंडी के झंडे, झंडे का रंग, रंगीन झंडे वाला मंदिर, मंदिर के शिलान्यास, प्रधानमंत्री के कुर्ते, केन्द्रीय मंत्री के बयान, रेलगाड़ी के पहिए, रफाल की कीमत, कोविड के आँकड़े, वित्त मंत्रालय के डेटा, सरकारी पोस्टर, शौचालय, मूत्रालय, रवीशालय आदि पर अपने सारगर्भित विश्लेषण देने से चूकते हों।

विश्लेषणों का दायरा और भी लम्बा हो सकता है। आने वाले दिनों में NDTV में कौन किसका काट कर भाग गया से ले कर, कौन अपना कटवाने के बाद भी प्रेमिका की शादी में सिलिंडर ढो रहा है, इस पर भी रवीशचर्चा की जा सकती है। मैग्सेसे पर पड़ती धूल से ले कर चेहरे पर छाती कालिमा की परत, जिसे घर आया मेकअप एक्सपर्ट फाउंडेशन या बीबी क्रीम मार कर भी सही नहीं कर पाता, इस पर भी रवीशचर्चा की जा सकती है और मोदी को जिम्मेदार बताया जा सकता है। झड़ते बालों और उड़ते टीआरपी पर भी रवीशरोना रोया जा सकता है। रविष अनंत, विषकथा अनंता।

हम मुद्दों को बहुत कम उनकी महत्ता से याद रखते हैं। एंकरों में पतित, पतिताधिराज और पतितखंती एंकरों के फेसबुक और ट्विटर टाइमलाइन पर जाएँ, इतने अच्छे कार्यों और योजनाओं के बीच भी, वो सरकार को किसी भी तरह से घेर लेना, कभी भी नहीं भूलते। मैं हैरान होता हूँ कि उन्हें इतने प्रपंची ख्याल आते कैसे हैं? 29 जून से 29 जुलाई के बीच रवीश ने कुल अनगिनत बार रवीशरोना रोया है।

सुबह में भी प्रोपेगेंडा ठेलते हैं, शाम में भी। मुझे एक गीत याद आ गया: सुबह को लेती है, शाम को लेती है, दिन में लेती है, रात में लेती है, क्या बुरा है, उसका नाम लेती है… गीत की अगली पंक्तियाँ हैं: रात को मोहे नींद न आए, मोदीघृणा मेरे तन को जलाए, तेरा तो हाल बुरा है, प्रपंच का रोग लगा है, चुपके से चोरी-चोरी, कॉन्ग्रेस से मिल ले गोरी… बस में लेती है, लोकल में लेती है, स्टूडियो में लेती है, टीवी पर लेती है… पूरा गाना अश्लील है, शब्द पर कम ध्यान दीजिए, भावनाओं को पकड़िए।
रवीश कुमार के अनुसार जो जैसा चश्मा लगाता है उसको वैसा ही दिखाई देता है और इसके अनुसार तो रवीश कुमार का चश्मा सबसे घटिया है , रवीश जैसे पत्रकारों ने समय के साथ पाला बदला है, रवीश कुमार की सोच के अनुसार भाजपा वाले बेवकूफ है,संह वाले बेकार है और देश वाले गवार है जो कुछ भी है बस रवीश कुमार है

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