शिकागो के फुलर्टन हॉल मे १३० साल बाद गूंजा
विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय का उद्घोष
डॉ. विश्वनाथ कराड के विचारः
फुलर्टन हॉल मे स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा स्थापित करने का संकल्प
पुणे : भारतीय दर्शन त्याग, भक्ति, स्नेह और सद्भावना पर आधारित है. लेकिन दुर्भाग्य से दुनिया भर में अत्याधिक उन्नत शैक्षिक प्रणालियों के कारण इस पहलू को दरकिनार कर दिया गया है. ११ सितम्बर १८९३ को विश्व धर्म संसद में भारत के महान पुत्र स्वामी विवेकानन्द के भविष्य सूचक शब्द केवल विज्ञान और धर्म अध्यात्म का एकीकरण ही मानव जाति में सद्भाव और शांति लाएगा. ऐसे विचार एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष विश्वधर्मी प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने व्यक्त किए.
अमेरिका के आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने विश्व दौरान विज्ञान, धर्म और आध्यात्मिकता की भूमिका के सार और दर्शन के बारे में बात की थी वहां पर शिकागो के मराठी मंडल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे.
इस अवसर पर बडी संख्या में विद्वान, विचारक, दार्शनिक, वैज्ञानिक एवं एमआईटी के पूर्व छात्र एंव अन्य नागरिक उपस्थित थे. इसी तरह नागपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस.एन.पठान, एममआईटी डब्ल्यूपीयू के कुलपति डॉ. आर.एम. चिटणीस, प्र कुलपति डॉ. मिलिंद पांडे, प्रो. मिलिंद पात्रे और डॉ. महेश थोरवे उपस्थित थे.
इस अवसर पर विश्वधर्मी प्रो. डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने फुलर्टन हॉल में स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा स्थापित करने का संकल्प लिया है, जिसे दर्शकों ने मंजूरी दी है.
प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा कराड ने कहा, पृथ्वी पर लगातार बढ़ती अराजकता, रक्तपात, अत्याधिक हिंसा और आतंकवाद, साथ ही घातक कोरोना वायरस के कारण होने वाली मौतें, साथ ही परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियारों का प्रसार, हमें डराता है कि २१वीं सदी मानव जाति का अंत नहीं देखेंगे. इसलिए यदि विश्व में शांति स्थापित करनी है तो अध्यात्म के साथ साथ मन और आत्मा का भी अध्ययन करना आवश्यक है. साथ ही मन की रसायन शास्त्र को आज तक कोई नहीं जान पाया है. इसके लिए मन के विज्ञान को आज की शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिए.
सकारात्मक मानसिकता विकसित करने और दुनिया में शांति की संस्कृति को बढ़ावा देने में विज्ञान और धर्म की सटीक भूमिका को समझना महत्वपूर्ण हैं. विज्ञान को पदार्थ की एकता और अंतिम स्थित को खोजने के रूप में परिभाषित किया गया है जबकि धर्म को ब्रह्मांड की अंतिम वास्तविकता को समझने के रूप में परिभाषित किया गया है.
उन्हें शारीरिक रूप से स्वस्थ, मानसिक रूप से सतर्क, बौद्धिक रूप से तेज और आध्यात्मिक रूप से उन्नत होना चाहिए ताकि वे विश्व समाज के कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें. आधुनिक शिक्षा प्रणाली में मानवीय मूल्यों को विकसित करने की कमी है. अध्यात्म मनुष्य को नैतिक आधार और नैतिक मूल्य प्रदान करने का विज्ञान है. इसमें दुनिया भर में शांति की संस्कृति स्थापित करने के लिए भारत पर नजर रखी जा रही है.
उपस्थित लोगों ने कहा कि शिकागो के फुलर्टन हॉल में १३० वर्षो के बाद एक बार फिर विज्ञान और अध्यात्म के सामंजस्य का उद्घोष हुआ है.