
अलार्ड यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को सीपीआर एवं बीएलएस की ट्रेनिंग
हार्ट अटैक के समय मरीज को बचाने का प्रशिक्षण
पुणे: अलार्ड यूनिवर्सिटी में छात्रों को जीवन रक्षक प्राथमिक चिकित्सा और कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन का विशेष प्रशिक्षण दिया गया. जिसका उद्देश्य युवाओं में दिल के दौरे में हाल ही में वृद्धि के बारे में जागरूक करना था. साथ ही जीवन रक्षक कौशल से लैस करना था ताकि वे हृदयाघात जैसी आपात स्थितियाँ से प्रभावी ढंग से निपट सकें.
आयोजित प्रशिक्षण का संचालन अलार्ड यूनिवर्सिटी के अलार्ड स्कूल ऑफ हेल्थ एंड बायोसाइंसेज विभाग की ओर से किया गया. इस समय इस कार्यशाला का उद्घाटन स्कूल ऑफ हेल्थ एंड बायोसाइंसेज के डीन डॉ. अजय कुमार जैन ने किया. इस मौके पर अलार्ड यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति डॉ. एल.आर. यादव, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के डीन डॉ.डी.के. त्रिपाठी,गणित के प्रो. डॉ. एस.के.श्रीवास्तव की प्रमुख उपस्थिति थे.
इसमें सौदत्ता अस्पताल और संजीवनी अस्पताल से डॉ हिमानवी कंवर, डॉ. स्वप्निल बिराजदार और श्री. शंभू सहित प्रतिष्ठित वक्ताओं ने सीपीआर और रोजमर्रा की जिंदगी में इसके महत्व के बारे में विस्तृत जानकारी दी. आयोजित कार्यशाला में लगभग ३० छात्रों ने भाग लिया. सभी पंजीकृत छात्रों को प्रशिक्षण पूरा करने के बाद प्रमाण पत्र प्राप्त हुए. कार्यक्रम का प्रबंधन छात्रों और शिक्षकों की एक समर्पित टीम द्वारा किया गया.
इस कार्यशाला के सत्र में ऐसे पीढ़ियों के लिए बेसिक लाइफ सपोर्ट पर चर्चा की गई, जिसमें छाती को दबाना, पीडितों को अस्पताल में आसानी से स्थानांतरित करने की तैयारी और हताहतों के मामलों प्राथमिक उपचार शामिल है.
बीएलएस एक व्यावहारिक जीवन रक्षक तकनीक है जो सीपीआर, प्राथमिक चिकित्सा और दिल के दौरे जैसी आपातकालीन स्थितियोें के दौरान जीवन को बनाए रखने के लिए आवश्यक अन्य महत्वपूर्ण कौशल को जोडती है. साथ ही सीपीआर में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया. जिसमें शीघ्र और प्रभावी सीपीआर के महत्व पर जोर दिया गया. इस बात का भी व्यावहारिक प्रदर्शन किया गया कि चेतावनी के संकेतों को कैसे पहचान जाए, स्थिति का तुरंत आकलन कैसे किया जाए, तथा पेशेवर चिकित्सा सहायता उपलब्ध होने तक तत्काल देखभाल कैसे प्रदान की जाए.
इनमें अधिकतर अचानक हमले अस्पताल के बाहर होते हैं, इसलिए हेल्थकेयर प्रोवाइडर के रूप में समाज को सीपीआर स्मार्ट बनाना हमारा कर्तव्य बन जाता है. किसी भी पीड़ित के सीपीआर से जीवित रहने की संभावना बढ सकती है.
इसमें डॉ. सविता पेटवाल, डॉ. दिशा संजलिया, आशीष यादव, डॉ. गरिमा साहू और रितु निकम शामिल थे.
इस कार्यशाला ने न केवल छात्रों को बीएलएस और सीपीआर मैनुअल की समझ को समृद्ध किया. बल्कि जब भी जरूरत पड़ी, किसी की भी जान बचाई जा सकती है।