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नवरात्री 2025 सनातन धर्म का प्रमुख पर्व…

नवरात्री 2025 सनातन धर्म का प्रमुख पर्व…

सनातन धर्म का प्रमुख पर्व होता है नवरात्रि जो साल में दो बार चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में कब है नवरात्रि? नवरात्रि के कौन से दिन करें किस माता की पूजा? जानने के लिए पढ़ें।

 

भारतवर्ष में हिंदूओं द्वारा मनाये जाने वाले प्रमुख पर्वों में से एक है नवरात्रि जो देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों को समर्पित होता है। नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। देश में अधिकतर चैत्र और शरद ऋतु में आने वाले नवरात्रि को धूमधाम से मनाया जाता है जबकि बेहद कम लोग जानते है कि वर्ष में चार बार नवरात्रि आते है जो इस प्रकार है: आषाढ़, चैत्र आश्विन और माघ आदि। चैत्र माह के नवरात्रि को बसंत नवरात्रि और आश्विन माह के नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते है जबकि आषाढ़ और माघ के नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि माना गया है।

कब है चैत्र नवरात्रि 2025?

2025 में चैत्र वासन्तिक नवरात्रि कब से हैं? तिथि व पूजा शुभ मुहूर्त

चैत्र नवरात्रि का इंतजार देवी दुर्गा के भक्त साल भर करते है। विक्रम संवत के प्रथम दिन अर्थात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर 9 दिन अर्थात नवमी तिथि तक चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि से ही गर्मियों के मौसम की शुरुआत होती है और प्रकृति एक महत्वपूर्ण जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। चैत्र नवरात्रि सामान्यतः मार्च या अप्रैल माह में आते हैं। चैत्र शुक्ल प्रथम से प्रारम्भ हुए नवरात्रि का समापन रामनवमी के दिन होता है।

 

चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन अर्थात नवमी तिथि को भगवान श्रीराम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि को रामनवमी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन अयोध्या में भगवान श्रीराम ने माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया था। इस वज़ह से चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है

पहला चैत्र नवरात्र: माँ शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना: 30 मार्च 2025, रविवार

 

दूसरा चैत्र नवरात्र: माँ ब्रह्मचारिणी पूजा 01 अप्रैल 2025, बुधवार, मंगलवार

 

तीसरा चैत्र नवरात्र: माँ चंद्रघंटा पूजा 01 अप्रैल 2025, बुधवार, मंगलवार

 

चौथा चैत्र नवरात्र: माँ कुष्मांडा पूजा 02 अप्रैल 2025, बुधवार

 

पांचवां चैत्र नवरात्र: माँ स्कंदमाता पूजा 03 अप्रैल 2025, गुरूवार

 

छठा चैत्र नवरात्र: माँ कात्यायनी पूजा 04 अप्रैल 2025, शुक्रवार

 

सातवां चैत्र नवरात्र: माँ कालरात्रि पूजा 05 अप्रैल 2025, शनिवार

 

आठवां चैत्र नवरात्र: माँ महागौरी दुर्गा महा अष्टमी पूजा 06 अप्रैल 2025, रविवार

 

नौवां चैत्र नवरात्र: माँ सिद्धिदात्री दुर्गा महा नवमी पूजा 07 अप्रैल 2025, सोमवार

 

नवरात्रि का दसवां दिन: दुर्गा प्रतिमा विसर्जन 08 अप्रैल 2025, मंगलवार

 

नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा के भक्तों के लिए विशेष होते है। इन नौ दिनों के दौरान देवी दुर्गा के भक्त सच्चे हृदय और भक्तिभाव से आराधना करते है, साथ ही नवरात्रि के नौ दिनों को किसी नए या मांगलिक कार्य के लिए शुभ माना जाता है।

 

सनातन धर्म के धार्मिक पर्वों और त्यौहारों में से एक है नवरात्रि, जिसे अधिकतर हिन्दुओं द्वारा अत्यंत श्रद्धा के साथ मनाया जाता हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार, नए वर्ष के आरम्भ से लेकर राम नवमी तक नवरात्रि को मनाया जाता है।

 

माँ दुर्गा की कृपा दृष्टि एवं आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-अर्चना, पाठ और अन्य धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न किये जाते है।

 

इस पाठ में माँ के नौ रूपों के प्रकट होने से लेकर उनके द्वारा दुष्टों का संहार करने का पूरा विवरण मिलता है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में देवी का पाठ करने से देवी आदिशक्ति की विशेष कृपा होती है। माता दुर्गा के भक्त देवी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि का उपवास करते है।

 नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूप

नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों 1. माँ शैलपुत्री, 2. माँ ब्रह्मचारिणी, 3. माँ चंद्रघंटा, 4. माँ कूष्मांडा, 5. माँ स्कंदमाता, 6. माँ कात्यायनी, 7. माँ कालरात्रि, 8. माँ महागौरी, 9. माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

 

माँ शैलपुत्री: माता दुर्गा के नौ रूपों में से प्रथम रूप देवी शैलपुत्री का है जो चंद्रमा का दर्शाती हैं। देवी शैलपुत्री के पूजन से चंद्रमा से जुड़ें दोषों का निवारण होता हैं।

माँ ब्रह्मचारिणी: ज्योतिषीय दृष्टिकोण से माँ ब्रह्मचारिणी द्वारा मंगल ग्रह को नियंत्रित किया जाता हैं। माता के पूजन से मंगल ग्रह के नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं।

माँ चंद्रघंटा: देवी दुर्गा का तीसरा स्वरूप देवी चंद्रघण्टा शुक्र ग्रह को नियंत्रित करने का कार्य करती हैं। इनके पूजन से शुक्र ग्रह के दुष्प्रभाव कम होते हैं।

माँ कूष्मांडा: भगवान सूर्य का पथ प्रदर्शन करती हैं देवी कुष्मांडा, इसलिए इनकी पूजा द्वारा सूर्य के अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है।

माँ स्कंदमाता: देवी स्कंदमाता की पूजा से बुध ग्रह सम्बंधित दोष और नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।

माँ कात्यायनी: माता कात्यायनी के पूजन से बृहस्पति ग्रह से जुड़ें दुष्प्रभावों का निवारण होता हैं।

माँ कालरात्रि: शनि ग्रह को माता कालरात्रि नियंत्रित करती हैं और इनकी पूजा से शनि देव के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

माँ महागौरी: माँ दुर्गा का अष्टम स्वरूप देवी महागौरी की पूजा से राहु ग्रह सम्बंधित दोषों का निदान होता है।

माँ सिद्धिदात्री: देवी सिद्धिदात्री द्वारा केतु ग्रह को नियंत्रित किया जाता हैं और इनके पूजन से केतु के बुरे प्रभावों का निवारण होता हैं।

 

नवरात्रि का धार्मिक महत्व

नवरात्र’ शब्द से नव, रात्रि अर्थात नौ रात्रियों का बोध होता है। इस दौरान देवी भगवती के नवरूपों की आराधना की जाती है। नवरात्रि में ‘रात्रि’ शब्द को सिद्धि का प्रतीक माना गया है। प्राचीनकाल से ही हमारे ऋषि-मुनियों ने रात्रि को दिन की तुलना में अधिक महत्व दिया है। यही कारण है कि शिवरात्रि, होलिका, दीपावली और नवरात्रि आदि त्यौहारों को रात में मनाने की परंपरा रही है। अगर रात्रि में कोई अज्ञात रहस्य या अदृश्य शक्ति न छुपी होती तो ऐसे त्योहारों को ‘रात्रि’ न पुकारकर ‘दिन’ ही कहा जाता।

 

नवरात्रि से जुडी पौराणिक कथा

पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, महिषासुर नाम का राक्षस ब्रह्माजी का परम भक्त था। उसने अपनी कठिन तपस्या से ब्रह्माजी को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया था कि कोई देव, दानव या पृथ्वी पर रहने वाला कोई मनुष्य उसको मार नहीं सकता था। ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद ही महिषासुर बहुत क्रूर और निर्दयी हो गया, तीनों लोकों में उसने आंतक मचा दिया। उसके आंतक से परेशान होकर देवी-देवताओं ने ब्रह्मा जी, विष्णु जी और महादेव के साथ मिलकर मां शक्ति से सहायता प्रार्थना की तब संसार को अत्याचार से मुक्त करने के लिए देवी दुर्गा प्रकट हुई जिसके बाद मां दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और अंत में दसवें दिन माता दुर्गा ने महिषासुर का संहार कर दिया। उस दिन से ही युद्ध के नौ दिनों को बुराई पर अच्छाई की विजय के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

 

वैदिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले,सर्वप्रथम रामेश्वरम में समुद्र के किनारे नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा की थी। लंकापति रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने की कामना से शक्ति की देवी मां भगवती का पूजन किया था। श्रीराम की भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उन्हें युद्ध में विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था, जिसके बाद भगवान राम ने लंकापति रावण को युद्ध में पराजित कर उसका वध किया था, साथ ही लंका पर विजय प्राप्त की थी, उस समय से ही नौ दिनों को नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। लंका पर विजय प्राप्त करने के दिन को दशहरे के रूप में मनाया जाता है

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