कार्यकारी संपादक पंकज कुमार ठाकुर
जदयू के राष्ट्रीय अधिवेशन में नीतीश कुमार का अचानक से पार्टी के अंदर ही पूरी तरह से सरेंडर कर देना निगलने या विलय होने की संभावना को बल देता है
मुझे नहीं रहना सीएम, जिसे चाहें बना दें : नीतीश कुमार
जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को बनाया गया। इसके पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। सबसे बड़ी बात यह कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा- मुझे नहीं रहना सीएम, जिसे चाहे सीएम बना दें!
अब थोड़ा दो-चार दिन पीछे के घटनाक्रम को देखते हैं!
अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने जदयू के विधायकों को तोड़कर पार्टी में शामिल करा लिया। संभवत: इसी कारण बिहार विधानसभा में कांग्रेस के विधायक दल के नेता व भागलपुर विधायक अजीत शर्मा ने कल कहा था कि भाजपा अजगर है जदयू को निगल जाएगी।
तो सवाल यह कि क्या वाकई भाजपा जदयू को पूरी तरह से निगलने की तैयारी कर चुकी है? क्या जदयू इस फांस से निकल पाएगा?
जब से बिहार का चुनाव परिणाम आया है तब से सभी राजनीतिक पंडितों का आकलन यही है कि जदयू का विलय भाजपा में हो जाएगा या बंगाल चुनाव बाद यहां की नीतीश कुमार की सरकार भी चली जाएगी। नीतीश कुमार अड़ेंगे तो मध्यावधि चुनाव होगा नहीं तो उन्हें कोई और बडा दायित्व देकर बिहार से किनारे किया जाएगा। आज राष्ट्रीय अधिवेशन में अचानक से नीतीश कुमार का अचानक से पार्टी के अंदर ही पूरी तरह से सरेंडर कर देना निगलने या विलय होने की संभावना को बल देता है। ध्यान देने वाली बात है कि चुनाव के ठीक पहले नीतीश कुमार ने पार्टी की पूरी कमान अपने हाथों में ले ली थी। तब आरसीसी सिंह एवं ललन सिंह पर पार्टी के ही कुछ नेताओं ने भाजपा का एजेंट तक कह दिया था। हालांकि तब भी दोनों नेता बहुत मजबूती से नीतीश कुमार के साथ बने रहे। अब जबकि आरसीपी सिंह को पार्टी की कमान सौंपी गई है तो उन्हें नीतीश के विकल्प के रूप में जनता भी स्वीकार करेगी? पार्टी के नेता-कार्यकर्ता कर सकते हैं, क्योंकि मेरी समझ है कि नेता-कार्यकर्ता हमेशा नीतीश कुमार की की अफसरशाही नीति के कारण उनसे बहुत दूर पहले ही जा चुके हैं।
बहरहाल, अब जबकि मैंने अपनी समझ की बात कही है तो मुझे लगता है कि जिस प्रकार राजद का मतलब लालू प्रसाद यादव है उसी प्रकार से जदयू का मतलब नीतीश कुमार। इन दोनों पार्टियों ने नेताओं की दूसरी कतार को खड़ा ही नहीं होने दिया। नतीजा…
लालू का राजद परिवारवाद को लेकर बढ़ा। तेजस्वी ने आगे बढ़कर नेतृत्व संभाल ली। बीते विधानसभा चुनाव के दौरान उमडऩे वाली भीड़ और परिणाम कह रहा है कि लालू के लाल को बिहार के वोटरों ने स्वीकारोक्ति की मुहर भी लगा दी है।
लेकिन, जदयू…! नीतीश कुमार का बेटा राजनीति में आएगा नहीं जो राजसत्तात्मक जीन लेकर दुनिया में आए संवेदनशील वोटरों का बड़ा वर्ग बेटे में बाप का अक्स ढूढ़ें। तो फिर जदयू में दूसरा कौन? अगर कोई चमत्कार न हो तो स्पष्ट है कि पार्टी का भविष्य अजगर की मुंह में जाता नजर आ रहा है।