प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों ने अविभाजित मध्य प्रदेश से लेकर राज्य को आठ मुख्यमंत्री दिए हैं। जिन हाईप्रोफाइल सीटों ने प्रदेश को मुख्यमंत्री दिए हैं, उनके समीकरण भी काफी दिलचस्प रहे हैं
रायपुर : प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों ने अविभाजित मध्य प्रदेश से लेकर राज्य को आठ मुख्यमंत्री दिए हैं। जिन हाईप्रोफाइल सीटों ने प्रदेश को मुख्यमंत्री दिए हैं, उनके समीकरण भी काफी दिलचस्प रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से गली-मोहल्लों में इस बात को लेकर बहस जारी है कि विधानसभा की 90 में से 54 सीटें हासिल करने वाली भारतीय जनता पार्टी का मुख्यमंत्री कौन होगा। राज्य की कमान किस नेता को मिलेगी।
यह तस्वीर एक से दो दिनों में साफ होने की उम्मीद जताई जा रही है। मुख्यमंत्री के प्रमुख दावेदारों में राजनांदगांव से विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह, लोरमी से अरुण साव और भरतपुर सोनहत से रेणुका सिंह के नाम शामिल हैं। अरुण साव या रेणुका सिंह को राज्य की जिम्मेदारी मिलती है तो लोरमी और भरतपुर सोनहत में से कोई एक नौवां मुख्यमंत्री देने वाला 10वां विधानसभा क्षेत्र बन जाएगा। राजनांदगांव और डोंगरगांव विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने के बाद डा. रमन सिंह मुख्यमंत्री बन चुके हैं।
इन सीटों से निकले ये मुख्यमंत्री
अविभाजित मध्य प्रदेश से लेकर अब तक खरसिया से अर्जुन सिंह, राजिम से पं. श्यामाचरण शुक्ल, दुर्ग से मोतीलाल वोरा, कसडोल से डीपी मिश्रा, सारंगढ़ से राजा नरेशचंद्र सिंह (तब मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ की पुसौर सीट से जीते थे), मरवाही से अजीत जोगी, डोंगरगांव और राजनांदगांव से डा. रमन सिंह और पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल निकल चुके हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अविभाजित मध्य प्रदेश के दौरान कांग्रेस की सरकारों में छत्तीसगढ़ का काफी दबदबा हुआ करता था। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के आंकड़ों के आधार पर ही मध्य प्रदेश में सरकारें बनती थीं।
रमन सिंह की चौथी पार
राजनांदगांव से चुनाव जीतने वाले डा. रमन सिंह को मुख्यमंत्री की अगर जिम्मेदारी मिलती है तो यह उनकी चौथी पारी होगी। वर्ष-2013 में भाजपा ने लगातार तीसरी बार कांग्रेस को मात देकर सरकार बनाई थी। रमन सिंह की अगुवाई में भाजपा को 2013 में 49 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस सिर्फ 39 सीटें ही जीत पाई थी। दो सीटें अन्य के नाम गई थीं। वर्ष- 2003 और 2008 में बहुमत मिलने पर डा. रमन सिंह को राज्य की बागडोर सौंपी गई थी।
भूपेश ने जोड़ा पाटन का नाम
वर्ष- 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिलने के बाद पाटन विधानसभा क्षेत्र भी इतिहास में जुड़ गया। यहां से चुनाव लड़ने वाले भूपेश बघेल प्रदेश के दूसरे कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे।
पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटों को मिली हार
राजिम और दुर्ग विधानसभा क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्रियों के बेटे राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। पं श्यामाचरण शुक्ल के बेटे अमितेश शुक्ल राजिम सीट से प्रतिनिधित्व कर रहे थे। इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। इधर, दुर्ग सीट से मोतीलाल वोरा की राजनीतिक विरासत उनके बेटे अरुण वोरा संभाल रहे हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में इन्हें भी हार का सामना करना पड़ा है। मरवाही से अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी को भी हार का मुंह देखना पड़ा है।
खरसिया बना अभेद किला
रायगढ़ जिले का खरसिया विधानसभा सीट कांग्रेस का मजबूत दुर्ग बना हुआ है। आजादी के बाद से ही सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। पहले कांग्रेस के कद्दावर नेता नंदकुमार पटेल यहां से 22 वर्षों तक लगातार विधायक रहे। अब उनके बेटे उमेश पटेल क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में भाजपा के संस्थापक रहे लखीराम अग्रवाल ने राज्य के गठन से पहले 1990 में खरसिया सीट से किस्मत आजमाई थी, लेकिन वो जीत नहीं सके थे। अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।