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जातिगत जनगणना, ‘बसपा’ विचारधारा की जीत – डॉ. हुलगेश चलवादी

जातिगत जनगणना, ‘बसपा’ विचारधारा की जीत – डॉ. हुलगेश चलवादी

कांग्रेस-भाजपा की बहुजन विरोधी नीतियों के कारण ही समाज शोषित-पीड़ित-वंचित

 

पुणे:देश में जातिगत जनगणना कराने का केंद्र सरकार द्वारा लिया गया निर्णय बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा, मांग और संघर्ष की जीत है, ऐसा प्रतिपादन पार्टी के प्रदेश महासचिव व पश्चिम महाराष्ट्र जोन के मुख्य प्रभारी डॉ. हुलगेश चलवादी ने रविवार (दि. 4) को किया। कांग्रेस-भाजपा की बहुजन विरोधी नीतियों के कारण यह समाज आज भी शोषित, पीड़ित और वंचित है, इस बात पर उन्होंने खेद व्यक्त किया। “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी” – इस नारे को सबसे पहले देने वाले बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी के विचारों के अनुरूप हुए संघर्षों के कारण ही आजादी के बाद पहली बार जातिगत जनगणना हो रही है, ऐसा डॉ. चलवादी ने कहा।

 

भाजपा और कांग्रेस जातिगत जनगणना के निर्णय का श्रेय लेने की होड़ में लगे हैं। जबकि इस मांग की मूल शुरुआत बसपा से हुई थी। यदि कांग्रेस-भाजपा और अन्य पार्टियों की नीतियां वास्तव में बहुजनों के प्रति पवित्र होतीं, तो ओबीसी समाज देश के विकास में एक प्रमुख भागीदार बन गया होता। भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के आत्मसम्मान और स्वाभिमान के मिशन को भी पूर्णता मिली होती, यह विचार डॉ. चलवादी ने मान. सुश्री बहन मायावती जी की भूमिका के रूप में प्रस्तुत किया।

 

महामानव डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर और बसपा के निरंतर संघर्षों के कारण आज ओबीसी समाज पहले से अधिक जागरूक हो चुका है। इसीलिए दलितों की तरह अब ओबीसी समाज के मतों को भी आकर्षित करने की होड़ इन दलों में दिख रही है। लेकिन वास्तव में, दलित, आदिवासी, ओबीसी और सभी समाजों के हित सिर्फ बसपा में ही समाहित हैं, ऐसा डॉ. चलवादी ने कहा।

 

1931 के बाद और देश की आजादी के बाद पहली बार जातिगत जनगणना के केंद्र के निर्णय का श्रेय लूटते हुए कांग्रेस यह भूल गई है कि दलित-ओबीसी समाज के करोड़ों नागरिकों को आरक्षण सहित उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने का “काला अध्याय” उसी के नाम दर्ज है, और इसी कारण से उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा।

 

लेकिन सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस के नेतृत्व में दलित व ओबीसी समाज के प्रति जो विश्वास दिखाने की कोशिश की जा रही है, वह विश्वसनीय प्रतीत नहीं होती। यह केवल वोटों के लिए की गई स्वार्थी और धोखेबाज राजनीति है। आरक्षण को निष्क्रिय करके उसे समाप्त करने की उनकी मंशा कौन भूल सकता है? ऐसा सवाल डॉ. चलवादी ने उठाया।

 

संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को भारत रत्न देने का मामला हो या अनुच्छेद 340 के अंतर्गत ओबीसी को आरक्षण देने का मुद्दा – इन सभी मुद्दों पर कांग्रेस और भाजपा का व्यवहार जातिवादी और घृणास्पद रहा है। लेकिन वोटों की राजनीति में वे अलग रुख अपनाते हैं। इसलिए नागरिकों को इनकी राजनीति से सावधान रहने की आवश्यकता है, ऐसा आवाहन डॉ. चलवादी ने किया।

 

वोट हमारा, राज तुम्हारा – नहीं चलेगा” इस मानवीय संघर्ष को सही और सार्थक बनाने की, और अपने पैरों पर खड़े होने की अब आवश्यकता है। इसमें किसी भी प्रकार की ढिलाई या लापरवाही घातक हो सकती है, और भाजपा-कांग्रेस जैसे दलों पर दलित, ओबीसी और बहुजन समाज के हितों को लेकर भरोसा करना उचित नहीं है, ऐसा मत डॉ. चलवादी ने व्यक्त किया।

 

 

 

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