समान नागरिक संहिता से मुस्लिम बहनों को होगा फायदा
उच्च और तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत पाटिल के विचारः
एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित भारतीय छात्र संसद का छठा सत्र
पुणे: इस देश में सभी के लिए कानून समान हैं लेकिन विरासत, विवाह, गोद लेना आदि जैसे कानून अलग अलग समुदायों के लिए अलग अलग है. लोकतंत्र ने सबको समान अधिकार दिया है. आज लोकतंत्र की ताकत यह है कि मेरे जैसे मिल मजदूर का बेटा मंत्री बन सकता है. समान नागरिक संहिता महिलाओं के लिए समानता लाएगी और हमारी मुस्लिम बहनों को समान अधिकार देगी. यह विचार महाराष्ट्र सरकार के उच्च और तकनीकी शिक्षा, कपडा उद्योग और संसदीय मंत्री चंद्रकांत पाटिल ने रखे.
भारतीय छात्र संसद फाउंडेशन, एमआईटी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट और एमआईटी वर्ल्ड पीस युनिवर्सिटी, पुणे के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय भारतीय छात्र संसद के १२वें संस्करण के छठे सत्र में समान नागरी संहिता का समय आ चूका है इस विषय पर वे बोल रहे थे.
इस मौके पर गोवा के पर्यारण कानून एवं न्याय मंत्री नीलेश काब्राल, सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता एड. मणिलक्ष्मी पावनी, नविका कुमार, राशिद अल्वी, विधायक हरज्योत सिंह और शोभित माथुर विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष प्रो.डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई.
साथ ही एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के कार्यकारी अध्यक्ष राहुल विश्वनाथ कराड उपस्थित थे.
इस मौके पर साध्वी डॉ. विश्वेश्वरी देवी का युवा आध्यात्मिक गुरू सम्मान और उत्तर प्रदेश के विधायक डॉ. अमित सिंह चौहान को आदर्श युवा विधायक से सम्मानित किया गया.
रितु खंडूरी भूषण ने कहा, शाह बानो, शायरा बानो सरला मुदगल मुस्लिम महिलाओं के खिलाफ अन्याय का उदाहरण देकर महिलाओं की असमानता को दर्शाती है. यह एक समान नागरिक संहिता की आवश्यक सुझाव देता है. गोद लेने, विरासत, विवाह आदि से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों को धर्म से अलग करने और लिंग और धर्म को तटस्थ कानून बनाने की आवश्यकता है.
नविक कुमार ने कहा, महिलाओं के समान अधिकारों और समान अधिकारों और समाज में उनके स्थान पर टिप्पणी की. महिलाएं बहुत आगे निकल चुकी है. और अब वे घर पर नहीं रुकेंगी. इसलिए उन्हें धर्म के नाम पर मत बांधो, गरिमा के साथ एक समान नागरिक कानून से समाज में सभी को लाभ होगा.
नीलेश काब्राल ने कहा, गोवा राज्य में १०० से अधिक वर्षों से समचू नागरिक संहिता है. उन्होंने सवाल उठाया कि अगर इसे वहां लागू किया जा सकता है तो पूरे भारत में क्यों नहीं. यह एक प्रगतिशील राष्ट्र का भी प्रतीक है और धर्मनिरपेक्षता और महिलाओं के समान अधिकारों को बढावा देता है.
राशिद अल्वी ने नागरिक संहिता और इसके कार्यान्वयन में तकनीकी कठिनाइयों के खिलाफ कहा, यदि प्रत्येक राज्य अपना कोड लिखता है, तो प्रत्येक राज्य का कोड अलग होगा. यह एक बडी समस्य होगी. यह अनुच्छेद ४४ और समान नागरिक संहिता की तुलना में बहुत अधिक दबाव और महत्वपूर्ण मुद्दे है. बेरोजगारी और जनसंख्या विस्फोट है. उन्हें छात्रों को मन और बुद्धि के संतुलन के साथ सोचना चाहिए. ऑखे बंद करके पालन न करे. अभी एक दूसरे पर विश्वास जगाने की जरूरत है.
एड. महालक्ष्मी पवानी ने कहा, तृतीय पक्ष के समुदाय को ध्यान में रखते हुए समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को रेखांकित किया. भारत को लिंग और धर्म आधारित कानूनों की जरूरत है. एक समान नागरिक संहिता सभी को समान पैमानों पर तौलती है और समानता के दायरे को बढाती है.
हरज्योत सिंह ने कहा, एपीजे अब्दुल कलाम शिक्षा के बल पर मिसाइल मैन बने. इस देश में ऐसे प्लेटफॉर्म की जरूरत है. जहां आप आकर चर्चा कर सकते है.
प्रा. शोभित माथुर ने कहा, कई जातियों और जनजातियों की अपनी न्यायिक व्यवस्था है. ऐसी न्याय प्रणाली औपचारिक व्यवस्था का विकल्प तैयार कर सकती है और उन पर दबाव कम कर सकती है.
प्रो.डॉ. गौतम बापट ने सूत्रसंचालन किया.