मधुमेह के खिलाफ लड़ाई में विविध संस्थाओं में सहयोग की आवश्यकता – विशेषज्ञ
आठवें आंतरराष्ट्रीय मधुमेह परिषद को अच्छा प्रतिसाद
विशाल समाचार संवाददाता पुणे : मधुमेह के खिलाफ लड़ाई में विविध संस्थांओ में सहयोग और ज्ञान का आदान-प्रदान होना जरूरी है ऐसी राय विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की गई. चेलाराम डायबेटिस इन्स्टिट्युट द्वारा ८ वे आंतरराष्ट्रीय मधुमेह परिषद – २०२४ का आयोजन किया गया था. प्रमुख अतिथि व “आयसर” पुणे के संचालक प्रा. सुनील भागवत, विशेष अतिथी व “एएफएमसी” पुणे के कमांडंट डॉ. (ले.जन.) नरेंद्र कोतवाल, ८ वे आंतरराष्ट्रीय मधुमेह परिषद – २०२४ के आश्रयदाता व चेलाराम डायबेटिस इन्स्टिट्यूट के अध्यक्ष लाल चेलाराम, चेलाराम डायबेटिस इन्स्टिट्युट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी व चीफ एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ.उन्नीकृष्णन एजी, चेलाराम डायबेटिस इन्स्टिट्यूटचे मुख्य वैद्यकीय संचालक डॉ. (ब्रिगेडियर) अनिल पंडित, चेलाराम समुह के उपाध्यक्ष प्रकाश भूपटकर ,सौ.शोभना चेलाराम व अन्य मान्यवर उद्घाटन समारोह में उपस्थित थे. इस दौरान बी.जे. वैद्यकीय महाविद्यालय और ससून रुग्णालय, पुणे के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ. गुरुराज मुतालिक इनको जीवनगौरव पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया.
इस परिषद में मधुमेह की जटिलताओं का प्रबंधन, किफायतशीर दरों पर मधुमेह उपचार, नई प्रगतियाँ और मधुमेह व्यवस्थापन में तंत्रज्ञान की भूमिका इन विषयों पर चर्चा की गई. मधुमेह के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक मोटापा है, जिसके उपचार पर परिषद में विस्तार से चर्चा की गई.
एएफएमसी पुणे के कमांडंट डॉ.नरेंद्र कोतवाल ने कहा की, मधुमेह मरीजों की बढ़ती संख्या हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती है, लेकिन नवाचार और सहयोग के लिए एक अवसर भी है. मधुमेह न केवल एक वैद्यकीय स्थिति है बल्कि व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों को प्रभावित करने वाली एक बड़ी चुनौती है. मधुमेह की व्यापकता में भारी वृद्धि चिंताजनक है और इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए एक साथ आना महत्वपूर्ण है.
आयसर के संचालक प्रा.सुनिल भागवत ने कहा की,मधुमेह जैसी स्थितियों के लिए कई जोखिम कारक हैं.प्रत्येक व्यक्ति की स्थिति का समाधान यह समान औषधि नहीं हो सकता। इसका मतलब है कि प्रत्येक व्यक्ति की वैद्यकीय स्थिति और कारणीभूत कारकों का सखोल अध्ययन आवश्यक है. इसलिए डेटा साइंस, मशीन लर्निंग, आर्टिफिशियल न्युरल नेटवर्क और इसी तरह के साधन उपयुक्त हो सकते हैं, और जहा डेटा सायंटिस्ट,बायोलॉजिस्ट और केमिस्ट एक साथ काम करते हैं,ऐसे आयसर जैसे संस्थाओं का इस विषय में समाज को उपयोग हो सकता हैं.
इस दौरान बात करते हुए बी.जे.मेडिकल कॉलेज व ससून हॉस्पिटल पुणे के प्रोफेसर एमेरिटस डॉ.गुरूराज मुतालिक ने कहा की, कई आधुनिक आविष्कारों के बावजूद भी हमें मधुमेह से छुटकारा नहीं मिल पाया है. मधुमेह यह सिर्फ शुगर और मेटाबॉलिज्म की बीमारी नहीं है बल्कि इसकी व्याप्ती काफी गहरी है. यह पूरे जीनोम ( जनुकीय जानकारी का संच ) को प्रभावित करता है और प्रणाली भी बिगड़ जाती है. उन्होंने जीनोमिक्स और एपिजीनॉमिक्स के उभरते विज्ञान का जिक्र करते हुए कहा, मधुमेह को हराना इतना मुश्किल क्यों है इस विषय पर इन विज्ञानों ने इस पर प्रकाश डाला है, लेकिन अब उम्मीद पैदा हो गई है. मेडिकल जीनोमिक्स इसमें प्रगति कर रहा है. पिछले 15 सालों में इस क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों को 20 नोबेल पुरस्कार मिल चुके हैं. जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, पुराने गुणसूत्र टूटने लगते हैं (क्रोमोज़ोनल अॅब्रेशन ) और रोगप्रतिकारक प्रणाली ख़राब हो जाती है,इसका असर मेटाबॉलिज्म सिस्टम पर भी पड़ता है. मधुमेह में न केवल कार्बोहाइड्रेट से संबंधित चयापचय बल्कि चर्बी और प्रोटीन से संबंधित चयापचय भी गंभीर रूप से प्रभावित हो जाती है. इन सभी पहलुओं पर काम करने के लिए निजी संगठनों समेत विभिन्न संगठनों के बीच सहयोग की जरूरत है. नॉन-कोडिंग आरएनए के क्षेत्र में प्रयोगशालाएं केवल पश्चिमी देशों में हैं और भारत में भी ऐसी प्रयोगशालाएं शुरू की जानी चाहिए।
चेलाराम डायबेटिस इन्स्टिट्युट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी व चीफ एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ.उन्नीकृष्णन एजी ने कहा की, चेलाराम डायबेटिस इन्स्टिट्युट यह संस्था चेलाराम फाउंडेशन के स्तंभों में से एक है, जिसका काम स्वास्थ्य और कल्याण से परे अन्य क्षेत्रों तक विस्तारीत हुआ है. यह परिषद विज्ञान में नए दृष्टिकोणों को समझने और इसका उपयोग मरीजों के बेहतर इलाज के लिए करने का एक बेहतरीन मंच है.
लाल चेलाराम ने चेलाराम डायबेटिस इन्स्टिट्युट की अब तक की यात्रा और सफलता के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी.उन्होंने कहा की, संस्थान की शुरुआत मरीज की देखभाल, प्रशिक्षण और संशोधन के माध्यम से सकारात्मक प्रभाव पैदा करने के उद्देश्य से की गई थी.चेलाराम डायबेटिस इन्स्टिट्यूट का मुख्य उद्देश्य मधुमेह से पीड़ित लोगों के समग्र कल्याण के लिए प्रयास करना है.